
कहानी
लगभग पच्चीस बरस पहले दो बहुत ही अच्छे मित्र देहली में एक ही प्राईवेट फार्म में एक ही पद पर कार्यरत थे I दोनों में दोस्ती इतनी गहरी थी कि हमेशा साथ साथ रहना एक ही थाली में खाना खाना एक ही कमरे में रहना I कुछ समय बाद दोनों का तवादला अलग अलग स्थानों पर हो गया लेकिन उनकी मित्रता में कोई फर्क नहीं आया I उस समय आज की तरह मोबाईल,इंटरनैट बगैरा तो थे नहीं इसलिए कभी कभार पत्रों का आदान प्रदान हो जाया करता था I
कुछ समय पश्चात् दोनों में से एक दोस्त का प्रमोशन हो गया और वोह बड़ा आफिसर बन गया I और बिधि कि विडम्ब्ना ही कहिए कि दूसरे दोस्त का तवादला भी उसके पास ही हो गया I यह जानकर कि नया बॉस उसका अपना अभिन्न मित्र ही है,उसे बेहद ख़ुशी हुई..... I दोनों जब आपस में मिले तो बहुत खुश हुए I धीरे धीरे दोनों अपनें अपनें कार्यों में व्यस्त हो गए I फिर एक दिन किसी दूसरे आफिस में कोई काम आ पड़ा जहाँ दोनों को ही जाना था चपड़ासी दफ्तर से बॉस का ब्रीफ केस और कुछ फ़ाइलें ले आया I बॉस नें अपनें मित्र से कहा यह फ़ाइलें और मेरा ब्रीफ केस उठा लो ....... यह सुनकर वो सुन्न सा हो गया I उसे समझ नहीं आया कि इतनीं गहन मित्रता के बीच यह बॉसगिरी कब और कैसे आ गयी शायद यहीं से मित्रता के एक पवित्र रिश्ते का अंत हो गया और सिर्फ बॉस और क्लर्क का रिश्ता शुरू हो गया I कुर्सी का असर कितना ज़ोरदार होता है आज इसका एहसास उसे हो गया I अगर बॉस के मन में हलकी सी भी दोस्ती जैसी कोई बात रही होती तो वोह कभी अपनें दोस्त को सारा सामान उठानें को न कहता कम से कम आधा भार तो खुद भी उठा लेता I कुर्सी के असर नें उसे एक अच्छे दोस्त से सिर्फ एक बॉस बना कर रख दिया I शायद उसे इस बात का एहसास ही नहीं था कि इस बॉस शब्द नें उससे क्या क्या छीन लिया ......?
आज इतनें बरस बीत गए दोनों अब भी उसी कंपनी में हैं लेकिन रिश्ता सिर्फ बॉस और क्लर्क का ही है प्यार मुहब्बत का कहीं कोई नाम=ओ-निशान नहीं I बॉस के पास गाड़ी पैसा बंगला सबकुछ है लेकिन प्यार की भूख उसकी आँखों में साफ दिखती है दुनियां की इस भीड़ में वोह अकेला है बिलकुल अकेला..........I
(दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')
09136211486
११-१०-११
ये तो होना ही था. ..सुन्दर पोस्ट.
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