
तू बुझते 'दीपक'की आशा
पुष्पलता तू यादों की
आशा है बस अगले जन्म की
रहे अधूरे बादों की
मंजुल मुख प्रीती ह्रदय की
दिव्य ज्योति मेरे बीते समय की
तू शीतल मेरे मन की भावना
उषा,निशा मेरी प्यारी कल्पना
सृष्टि की इक अद्वभुत रचना
परिकल्पना सी लिखता रहूँ तेरी
श्रुति,स्तुति,मनमोहनी बंदना
तू मेरे अंतर्मन की सीमा
तूनें सिखाया हँसकर जीना
अति मधुर मुस्कान तेरी
इतना नशा जैसे मय का पीना
दूर चला जाऊंगा अब मैं
माया ममता से
जारी रहेगी खोज शांति की
नयनों की ज्योति से
इतना यकीं है मुझको इक दिन
मुक्ति पा जाऊंगा
पूनम की मदमस्त चांदनी
में ही नहाऊंगा
फूल 'कुमुद' की खुशबू मुझको
अक्सर भाती है
लेकिन उसकी मधुर रागनी
बहुत सताती है
व्याकुल नीर की शीतलता में
अब खो जाना है
बीणा की झंकार को
गले लगाना है
प्रेम की प्यासी ऋतुओं के
मन,ह्रदय में बस जाना है
दीपक 'कुल्लुवी'
09350078399
बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति...
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