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वह शशी कहाँ है

बड़ी रात हो गई है वसती भी सो गई है , कोई मुझे भी सुलाओ बड़ी नींद आ रही है!


वही जो शाम तक था पुरा वही चंद्र माँ अधुरा , सागर बजा राह है लहरों का तन पुरा !


यही वक्त गीत का है नही हर जित का है, शायद इसी खुशी में मेरी रूह गा रही है !


कभी प्यार की नजर सी कभी नाग की जहर सी, मेरी जिन्दगी ही मेरी गर्दन झुका रही है!


हर चीज छूटती है हर आस टूटती है , जब मौत की नदी में यह दे डूबती है !


पूछो नही कहाँ हूँ पर खुश नही जहाँ हूँ , होना जहाँ नही था में आजकल वहां हूँ !

वैसे तो जो मुझको मानता है , पर ऐसे लोग कम है जो मुझको जानते है !


उनको ही दूंदता हूँ उनसे ही पूछता हूँ , वो शशी कहाँ हे जो याद आ रही है !

1 comments:

  1. it a very good thought :'' aksar ye hota hae jhan mea, jo chahiye tha milna, ata nahi hae jiwan me. fir bhi gam na kar e dost kabhi kisi ko mukamil jhan nahi milta hae es jiwan mea!

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