
लघु कथा
(***** दुखी आत्मा *****)
ग़ालिब तेरी गलियों में बिकेंगे अपने शे-र
याद करेगी दुनियां जब हो जाएँगे हम ढेर
एक भजन लेखक,शायर का देहांत हो गया इसलिए दाहसंस्कार के लिए कुछ एक जानने पहचानने वाले लोग दोस्त मित्र,रिश्तेदार उनके घर पर एकत्रित हो गए I सब लोग अपने अपने ढँग से उनकी विधवा पत्नी से संवेदनाएँ व्यक्त कर रहे थे उनकी लेखनी की तारीफ कर रहे थे.... उन्हें कुछ अवार्ड भी मिले थे उसकी चर्चा भी हो रही थी I
कुछ देर बाद एक मित्र नें उनकी विधवा पत्नी से कहा .....भाभी जी दाहसंस्कार के लिए लकड़ी व अन्य सामग्री की ज़रुरत पडेगी इसलिए लगभग दस हज़ार रुपये दे दीजिए ....दस हज़ार.....?... यह सुनकर वह चौंकते हुए बोली भाई साहब इनकी कुल जमा पूँजी भी इतनी नहीं है...... सारे बैंक खाते भी खंगाल लो तो भी दो ढाई हज़ार से ज्यादा नहीं निकलेंगे.....सो दस हज़ार कहाँ से निकालूँगी मैं ....? कमबख्त मंगल सूत्र भी नकली चाँदी का है.... कोई बीस रुपये नहीं देगा इसके........ I
खैर.......यह लो पांच सौ रुपये इससे सामग्री तो आ जाएगी बाकि दाहसंस्कार के लिए तो घर में इनके लिखे हुए कागजों की रद्दी ही बहुत है....सारी उम्र इन्होंने और किया ही क्या है...? एक लिखने का ही काम तो किया है...भजन,कहानियां, कविताएँ,गज़लें,लिख लिख कर कमरों के कमरे भर दिए हैं I वैसे भी इनके बाद यह सारी रद्दी कवाड़ी को ही बेचनी पडेगी आजकल इन्हें पढने वाला है ही कौन.....?
चलो इसी बहाने इन बेचारों का दाहसंस्कार भी हो जाएगा और कागजों का कबाड़ भी ख़ाली हो जाएगा........ हे राम....दुखी हो गयी थी मैं इन कागजों से...I
साक़ी हमारी और भी देखो तो गौर से
फिर चाहे कुछ भी हो य बदनाम हो जाएँ
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दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
9350078399
लेखकों की स्थिति का सटीक चित्रण...
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