श्री जल देव गण किंगल
जहां राजा वहीं मंत्री इसी प्रकार जहां देवता वहां देव गण भी। अथाZत राजाओं के विस्तृत कार-करिन्दों की भान्ति श्री कोटे’वर महादेव के कुछ चमत्कारी गण जिन्हें यहां की स्थानीय भाषा में (नौड़-बौड़) कहते है, भी है। इन्हीं गणों का एक उदाहरण ‘किंगल नामक एक कस्बे’ में देखने को मिलता है। किंगल में एक खडड बहती है। उस खडड पर पानी का एक झरना गिरता है। इस झरने के बहाव से जो तालाब बनता है, वह देखने में काफी छोटा और कम गहरा लगता है। परन्तु 1897 को एक रहस्यपूणZ और सत्य कहानी है कि जब यहां पर लकड़ी के एक ठेकेदार ने अपनी ‘’ाहतीरियां’ इस झरने से ले जानी चाही तो उसकी सारी की सारी शहतीरियां झरने में बने तालाब में डूब गइZ और उनका नामोंनि’ाान तक न रहा। किंगल के स्थानीय लोगों से इस आ’चयZ चकित घटना का विचार करने के बाद उक्त ठेकेदार ने श्री कोटे’वर महादेव के श्री जल देव जिसे ‘जुंडलू’ भी कह देते है, की पूजा की और अपना कायZ सफल बनाया। पुराने समय में इस जुंडला नामक झरने से भी भेड़े से आए बूढ़े देवता की चमत्कारी बतZनों की घटना की भान्ति ही बतZन हर कायZ को निपटाने के लिए मिलते थे। इन बतZनों को लेने में केवल मनुष्य को उस झरने पर जाकर धूप जलाकर श्री जल देवता की स्तुति करनी पड़ती थी और बतZनों की सूचि बनाकर या बतZनों के नाम पर एक-एक पत्थर की कंकरी रख कर वापिस आना पड़ता था। प्रात׃ आकर मनचाहे बतZन मिल जाते थे। कायZ समाप्ति पर इन बतZनों को स्वच्छता से तालाब के किनारे रखा जाता था, जहां से वह बतZन स्वयं ही लुप्त हो जाते थे।
परन्तु मनुष्य कभी-कभी नीच काम कर बैठता है। जिस का प्रायि’चत उसे तो करना ही पड़ता है। परन्तु उस द्वारा किए गए इस कुकमोZं का फल उसे भी भोगना पड़ता है। यह आदान-प्रदान काफी लम्बे समय से चला आ रहा था। परन्तु विक्रमी समत1900 के आस-पास की ही एक बात है कि, कुमारसैन रियास्त के एक आदमी ने इन बतZनों में से एक बतZन चुरा दिया, चुराए हुए बतZन के स्थान पर उसी तरह का बतZन रख दिया। सम्भवता यह उस व्यक्ति की दैविक शक्ति को परखने का एक नाटक हो। परन्तु जो कुछ भी होगा, यह परख बहुत महंगी साबित हुइZ। उसकी इस हरकत से ‘जुंडलू देवता’ रूष्ट हो गए। उसी समय से यहां से बतZन निकलने बन्द हो गए। आज भी जुंडलू देवता की किंगल व आस-पास के लोगों में बहुत आस्था है। कहा जाता है कि यह शक्ति श्रद्धा एवं स्वच्छता की दास है। इसका एक उदाहरण किंगल के लौगों से सुनने को मिलता है। इस देवता का कोइZ मन्दिर अथवा कोइZ रथ नही है। फिर भी इसे कइZ लौगो ने साक्षात रुप में देखा है। कथनानुसार श्री जल देव सफेद वस्त्र धारण किए सफेद रंग के घोड़े पर चलते हैं। आज भी किंगल ओर आस-पास के लोगों में ‘श्री जल देवता’ के प्रति गहरी आस्था है ओर कहा जाता है कि श्री जुडंलू देवता अपने क्षेत्र की प्रजा रक्षा हेतू वायु में बिजली वेग के समान चलते है।
Ref.---("Shiv Shakti Sri Koteshwer Mahadev"
by "Amrit Kumar Sharma")
GOOD EFFORED
जवाब देंहटाएं