इधर कुछ दिनों सेअपने मुहल्ले में ये कुछ आम हो गया है कि हम करते हैं कुछ और तो होकर आता है कुछऔर! पता नहीं हमारे मुहल्ले के वाशिंदों के दिमाग में कौन पिशाच घर कर गया है?पिछले दो साल सेमुहल्ला सुधार कमेटी यह सोचकर चंदा इकट्ठा करने में दिनरात जुटी थी कि चंदे सेअबके मुहल्ले में जज घर बनावाया जाएगा। पिछले हफ्ते जब जज घर की आधार शिला रखीजानी थी तो मुहल्ले के सभी आदरणीय आधार शिला वाले स्थान पर खड़े के खड़े रह गए औरउधर मुहल्ला सुधार समिति के प्रधान ने चंदे से इकट्ठी हुई धन राशि के दम पर अपनेअपने दसवें कमरे की आधारशिला रख डाली।
इधर सरकारसे मुहल्ले के रास्ते के निर्माण के लिए बीस हजार में से कट कटाकर दस ही हाथ लगेतो मुहल्ले में जश्न हुआ। जिस दिन रास्ते का काम शुरू होना था तो पता चला कि इसपैसे से तो रास्ता सुधार कमेटी के प्रधान अपने आंगन को पक्का करवाने में जुटे हैं।इन प्रधानजी से तंग आकर हमने फिर एक और नया प्रधान चुना । इसने सबसे पहले मुहल्ले के प्रतिसत्य निष्ठा और ईमानदारी की शपथ हमारे कहने से पहले खाई। लगा ये बंदा मुहल्ले केविकास में ईमानदारी बरतेगा । मुहल्ले वालों को लगा कि मुहल्ले में सरकार का एकसार्वजनिक नल लगवाया जाए। कारण, कुत्ते मुहल्लेवालों के बाहर रखे पानी के बरतनों को जूठा कर रहे थे और पता न लगने के कारण जब वहीजूठा पानी मुहल्ले का शरीफजादा पी रहा था तो कुत्तों सा हो रहा था। प्रधान के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए मुहल्ले वालों ने फिर चंदा इकट्ठा कर सरकारी दफ्तर मेंखिला पिला कर नल पाने के चक्कर लगाने शुरू किए। काफी मशक्कत के बाद मुहल्ले के लिएसार्वजनिक नल स्वीकृत हो गया। मुहल्ले में एक बार फिर नए प्रधान की अगुआई में जश्नमना।
महीने बादजब विभाग के सार्वजनिक नल लगाने आने वाले बंदों ने सोम पान करने के बाद पानी केनलके की पाइप नए प्रधान के शौचालय की ओर मोड़ी तो मुहल्ले वालों के होश एक बार फिरउड़े। पर सब यह सोच कर चुप से रहे कि हो सकता है मुफ्त की ज्यादा पी ली हो इसलिएगलती से पाइप का मुंह दूसरी ओर को मुड़ गया हो । मुफ्त की शराब जब काजी को भी हजमहोती रही है तो इन बंदों को पता नहीं क्यों हजम नहीं हो रही थी। इतनी सी पीकर हीबहक गए थे । तभी सरकारी बंधुओं से रोज का पाला पड़ने वाले एक सिद्ध पुरुष ने बतायाकि ये विभाग में नए नए ज्वायन किए हैं अभी खाने पीने के इतने हैबीचुअल नहीं हुएहैं, कुछ दिन मेंरवां हो जाएंगे। डांट वरी, मैं इन्हें खुदहैंडिल कर लूंगा। जब पाइप नए प्रधान के शौचालय के दरवाजे तक पहुंच ही गई तो एकआयोडीन रहित नमक खाने वाले ने उन्हें रोकते हुए पूछा‘ भैया! ये पाइपबिछा कहां को रहे हो? ज्यादा पी ली होतो कल आ जाना।’
‘ जहां के लिएनलका सैंक्शन हुआ है वहीं के लिए पाइप बिछा रहे हैं। इतनी पिलाई ही कहां है आपनेजो हम बहक जाएं।’इनके हेड ने अपना हेड झटकते हुए कहा और पाइप कसने लग गया।
‘पर नलका तोमुहल्ले के मुहाने पर लगना था।’
‘प्रधान जी काशौचालय क्या वहां भी है?’उसने चौड़े होकर पूछा तो साथ खड़े प्रधान जी सीना चौड़ा किएमंद मंद मुस्कराते रहे और मुहल्ले वाले....
कई दिनोंसे पेट में दर्द हो रहा था। सोच रहा था कि अजवायन खाकर ठीक हो जाएगा, पर नहीं हुआ तोनहीं हुआ । हारकर डाक्टर के पास गया तो उस समय वे एमआर से गिफ्ट लेने में मग्न थे।उनके कमरे के बाहर मरीजों की इतनी लंबी लाइन, इतनी तो यमराजके दरबार के आगे भी नहीं होती। अचानक अपनी जान पहचान का इस अस्पताल का बंदा कहींसे आ टपका, जान में जान आई।
‘क्या बात है?’
‘पेट में कईदिनों से दर्द हो रहा है।’
‘तो पहले क्योंनहीं आए?’
‘सोचा यों ही ठीकहो जाऊंगा।’
‘थोड़ा यों मुड़िए, तुम्हारे साथ हीनहीं ,पूरे देश के साथयही प्राब्लम है, जब बीमारी हद सेआगे निकल जाती है तो इलाज करवाने चलते हैं। समय रहते अगर इलाज करवा लिया जाए तो यहहाल न हो। और हां थोड़ा अपने खाने की आदत को सुधारिए।’
‘ पर जब साथ वालाखाता ही रहता है तो डाक्टर साहब मुझसे भी नहीं रहा जाता।’ मैंने अपनीव्यथा कही।
‘उसकी उम्र कितनीहै?’
‘ यही कोई तीसबत्तीस साल।’
‘ उसे तो अभीजिंदगी में बहुत कुछ करना है। आप बस अब अपने आगे की सोचिए।’
घर आकरदवाई ली तो पेट दर्द तो ठीक नहीं हुई पर मुझे लगा जैसे मेरी मरी हुई आत्मा जिंदाहो उठी। एकाएक मुझमें मानसिक परिवर्तन आने लगा। और घंटे बाद ही पूरा का पूरापरिवार परेशान। में तो पहले ही शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था। घर वालों ने आननफानन में गाड़ी की और मुझे अस्पताल ले गए। शुक्र भगवान का! वहां वही डाक्टर मिल गएजिन्होंने मुझे पहले देखा था।
‘ अब क्या हो गया? कहीं और दर्द होगई क्या?’
‘नहीं।’
‘तो??’
‘साहब, खाई तो आपकीलिखी पेट दर्द की दवाई ही थी, पेट दर्द तो ठीकनहीं हुआ पर मरी हुई आत्मा जाग उठी। ’पत्नी ने मेरादर्द से पीड़ित पेट पकड़े रखा।
‘ देखिए भाई साहब!हम तो केवल दवाई ही लिख सकते हैं। बाकी दवाई में क्या है,यह तो दवाईबनाने वाला ही जाने।’ डाक्टर साहब भीपरेशान हो उठे।
‘पर दवाई खाकर आजतक मरते ही अधिक देखे। यह पहला केस है जिसमें दवाई खाकर मरा हुआ कुछ जिंदा हुआ हो।’ करुणामूलक आधारपर मेरी जगह लगने की आस लगाए बेटे ने चिंता में डूबे हुए कहा तो डाक्टर ने उसकेकंधे पर हाथ रखते कहा,‘यार! किस्मत अपनी- अपनी।’
मरी हुईआत्मा के जिंदा होने वाले दिन से लेकर आज तक मेरा परिवार ही नहीं मैं भी सच्ची कोबहुत परेशान हूं। घर की सारी शान शौकत को ग्रहण लगा गया है। केवल और केवल पगार परजी रहा हूं। आत्मा से रोज की तरह कल सांझ फिर निवेदन किया,‘हे आत्मा! प्लीजतू मर जा और मुझे जिंदा रहने दे। या मैं तुझसे तंग आकर आत्महत्या कर लेता हूं। फिरन रहेगा बांस और न रहेगी बांसुरी।’ तो आत्मा नेविनम्र हो पूछा,‘एक बात पूछूं?’
‘ तो मर जाओगी?’
‘ हां।’
‘तो पूछो।’ मेरा मन मल्हारगाने लगा।
‘तुम मुझे मारकरकितने साल जिए?’
‘जबसे दिमाग कीभूख से परेशान हुआ।’
‘ये भूख कम हुईक्या?’उसने पूछा तोपहली बार मैं सोचने को विवश हुआ। काफी देर तक सोचने के बाद मैंने सिर खुजलाते कहा,‘नहीं।’
‘ तो जिस देश मेंलोकतंत्र हो वहां कुछ जीने का हक तो गरीबों को भी होता होगा न? आत्मा से सबकुछछीन लो मित्र, पर थोड़ा सा हकतो उसे भी जीने का दो। ’
बंधुओं!मैंने आज तक पत्नी को उसके नाजायज हक दिए। बच्चों को उनके नाजायज हक दिए तो मेरेमन में आया कि जिसने अपने मरने के बाद मुझे इतने हक दिए आज मैं भी इसे कुछ जीने काहक दे ही दूं। तो जा आत्मा! तू भी क्या याद रखेगी कि तेरा भी किसी शरीफ से पालापड़ा था। मैंने आज से तुझे जीने का हक दिया।
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