घर की छत से कुछ यूं दिखते हैं नज़ारे
रास्ता कुछ यूं कटता है
तुम आए हो................
तुम आए हो मेरे सामने इक प्रीत की तरह
आओ गुनगुना लूं तुम्हें इक गीत की तरह
छा रही है सब तरफ आलम-ए-मदहोशी
कूचा-2 महकने लगा है पत्तों में हो रही सरगोशी
तुम आए हो मेरे सामने इक पैगाम की तरह
आओ पी लूं तुम्हें इक जाम की तरह
फिज़ाओं में लरजने लगा है इक तराना
गाने लगे हैं भंवरे कलियों ने सीखा है इतराना
तुम आए हो मेरे सामने जुस्तजू की तरह
आओ बिखेर दूं तुम्हें इक खुशबू की तरह
छा गये हो इन पर्वतों पे तुम यूं घनेरे
दरिया तूफानी कह रहा तुम हो मीत मेरे
तुम आए हो मेरे सामने इकरार की तरह
आओ अपना लूं तुम्हें इक प्यार की तरह
आओ अपना लूं तुम्हें........................!!
सुमन ‘मीत’
aapki sundar tasveeron ke tarah hi aapki kavita bhi sundar lagi...
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
BAHUT SUNDAR DILKASH RACHANA
जवाब देंहटाएंDEEPAK KULUVI