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लघुकथा: गुरुदक्षिणा

‘‘क्या समय आ गया है, आज के छात्र अपने गुरु को सम्मान ही नहीं देते जबकि एक समय वह था जब गुरु देव-तुल्य पूजे जाते थे।’’
एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों से कह रहे थे।
तभी एक विद्यार्थी खड़ा होकर कहने लगा ---
‘‘सचमुच समय बदल गया है गुरु जी। पहले शिक्षा  व्यवसाय नहीं था जबकि आज के शिक्षक शिक्षा का दान नहीं देते बल्कि पैसे के लिए उसे बेचते हैं। ट्यूशन के लिए निर्धारित ‘रेट’ भी हैं जैसा कि किरयाने की दुकान में होता है।’’
सुनकर शिक्षक महोदय बगलें झांकने लगे।

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