
शर्मसार
हालत जानवरों सी हो गई
इंसान को इंसान पे दया न आई
अब तो आदत हो गई
दीपक "कुल्लुवी" क्या कर सकता
वह तो है मजबूर
इंसानियत भी शर्मां गई खुद से
अब किसपे करे गरूर
कभी तो मेरी हालत पे
आप भी करते गौर
दिल के छाले चीख चीख के
पल पल मचाते शोर
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
१५-०४-२०११.
अब शोर सुनने को किसी के पास भी वक़्त नहीं है...अफसोस...
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