रूठते सिरफ वो तो मना ही लेते हम
होते गिले शिकवे मिटा ही लेते हम
हमसे खफा का तो सबब वो ही जाने
होती खता कोई सज़ा ही लेते हम
ऐसी न थीं मजबूरियाँ कोई उनकी
होते दिले रुसवा खता ही लेते हम
वस्ल हिज्र ज़माने की पुरानी बातें हैं
जो हाल हो खुलकर सुना ही लेते हम
रूठना कभी तो मान जाना वाजिब है
होता कहीं ऐसे निभा ही लेते हम !!
होते गिले शिकवे मिटा ही लेते हम
हमसे खफा का तो सबब वो ही जाने
होती खता कोई सज़ा ही लेते हम
ऐसी न थीं मजबूरियाँ कोई उनकी
होते दिले रुसवा खता ही लेते हम
वस्ल हिज्र ज़माने की पुरानी बातें हैं
जो हाल हो खुलकर सुना ही लेते हम
रूठना कभी तो मान जाना वाजिब है
होता कहीं ऐसे निभा ही लेते हम !!
nice one.
जवाब देंहटाएंgar saath nibhata vo mera ek kadam
omar bhar ki bewafaii seh hi lete ham.
Thanks a lot for comments with beutiful 'sher".
जवाब देंहटाएंअच्छी शायरी ,
जवाब देंहटाएंहमें मिलते तो ही मना लेते
लेकिन जो मिलते ही नहीं
कैसे फासला कम किया जाए|
मुकेश जी,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभार !जो मिलते हैं ,उनको मनाओ जो नहीं मिलते उनको खुदा के करम पर छोड़ दो !