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दुआओं का असर


कहानी   दुआओं का असर

इंसान को हमेशा अपनी औकात में रहना चाहिए I अपनी सफलता देख बंदर की भांति उछलना कूदना हरगिज़ नहीं चाहिए न जाने तकदीर का पहिया कब पलट जाए,आप औंधे मुंह जमीन पर आ गिरो और सारा जग आपकी हंसी उढ़ाए I एक हमारे जानने वाले अजीज़ एक गैरसरकारी संस्थान में कार्यरत थे और एक टूटे से लम्रेटा स्कूटर पर आते थे जैसे जैसे उनकी तरक्की होती गयी और वह उच्च पद पर आसीन होते गए तो अपनी औकात भी भूलते गए I कंपनी का ड्राईवर कंपनी की लम्बी गाड़ी मोती तनख्वाह , हर सुख सुबिधा आराम के नशे नें उन्हें अँधा कर दिया उनके तालिबानी हुक्म उनके अधीनस्थ गरीब लाचार कर्मचारियों पर भारी पड़ने लगे किसी की सुननी ही नहीं बस अपनी ही करनी जिससे नहीं बनी उसे परेशान करना अपनें सीनियर्स से झूठी शिकायतें करना उन्हें बेवजह उकसाना,भढ़काना उनकी छवि ख़राब करना I बस यही सब उम्र भर करते रहे अब ऐसे में उन्हें कोई दुआ क्या देता सब बददुआ ही देते चले गए और यह बात सत्य है की दुआ हो या बददुआ फलती ज़रूर है शायद ही किसी नें कभी उनके चहरे पे हंसी देखी हो हमेशा गुस्से में ही जले भुने रहते थे I

जैसे ही उनकी नौकरी से सेवा निवृति के दिन नज़दीक आए तो उन्हें एक लाईलाज बीमारी ने घेर लिया इसका सम्पूर्ण इलाज तो हरगिज़ संभव नहीं हाँ पैसे के दम पर रगड़ घसीट कर थोडा बहुत आगे खिसकाया जा सकता था लेकिन वोह भी कब तक आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी कभी न कभी बारी तो आएगी ही पैसा बहाने के बाद भी दर्द,तकलीफ ,परेशानियाँ कम नहीं होंगी बढ़ती उम्र के साथ बढती ही जाएँगी I अब जिंदगी भर किसी का भला तो किया नहीं जो कोई उनकी बेहतरी के लिए सोचे I हाँ कुछ झूठा दिखावा करने वाले उनके चमचों को छोड़कर और किसीको उनसे हमदर्दी शायद ही हो I

अभी तो फिर भी गनीमत है कि अच्छी खासी तनख्वाह , कंपनी का ड्राईवर कंपनी की गाड़ी है लेकिन नौकरी छूटने के बाद उनका क्या होगा जब यह सुविधाएँ समाप्त हो जाएँगी और माशाल्लाह कर्म भी ऐसे हैं कि कोई झूठे मुंह भी नहीं पूछेगा I ऐसे में क्या होगा किसी भी इंसान को को यह हरगिज़ नहीं भूलना चाहिए कि

दुआओं,बददुआओं का असर होता ज़रूर है
फिर भी तेरे दिमाग में क्यों रहता फितूर है
क्या साथ तू लाया था क्या साथ ले जाएगा
किस बात का ओ बन्दे तुझको गरूर है..

दीपक 'कुल्लुवी '
18 /7 /12 .
09350078399

1 comments:

  1. बहुत ही व्‍यावहारिक बातें बतलायी आपने ..

    हम तरक्‍की तभी करते हैं जब प्रकृति हमारा साथ देती है ..

    प्रकृति साथ न दे तो किसी भी वक्‍त हम धूल धूसरित हो सकते हैं ..

    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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