Home » YOU ARE HERE » भाई दूज लघुकथा

भाई दूज लघुकथा

 दीपावली के तीसरे दिन यानी भाई दूज के दिन मैं अपने परिजनों और पारिवारिक मित्र के साथ भोपाल के न्‍यू मार्केट में टॉप एन टाऊन आईस्‍क्रीम पॉर्लर से आईस्‍क्रीम ले दुकान के सामने ही खडे-खडे खा रहा था । मैंने आईस्‍क्रीम जल्‍दी खत्‍म कर लिया। दूसरे अभी खा ही रहे थे । इसलिए मेरे पास थोड़ा समय था । मेरे जूते काफी गंदे हो रहे थे । साथ के फुटपाथ पर तीन-चार बूट पॉलिश वाले बैठे हुए थे । समय का सदुपयोग करने के लिए मैं उस ओर बढ़ा । एक चालीस -पैंतालीस वर्षीय पॉलिशवाला जो उस समय खाली बैठा था, मैंने अपने जूते खोल कर उसे अच्‍छे से पॉलिश कर चमकाने के लिए कहा । वह पॉलिश करने में तल्‍लीन हो गया । मैं उसे ध्‍यान से देखने लगा । उस के बाल बिखरे हुए थे । उस ने शायद कंघी नहीं की थी । बालो पर धूल सी जमी थी । शायद वह काफी दिनों से नहाया भी नहीं था । चेहरे पर बेतरतीव दाढ़ी उगी थी । आंखों की कोरों में कीच भी जमी हुई थी । कुर्ता- पजामा भी काफी मैले दिख रहे थे । उन पर जगह-जगह पालिश के धब्‍बे लगे हुए थे । कुल मिला कर उस का हुलिया अच्‍छा नहीं था ।

मैं अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे अभी उस का मुआयना कर ही रहा था कि मुझे किसी ने पीछे से हल्‍के से धक्‍का दिया । मैंने चौंक कर पीछे देखा । एक लंबा, हट्टा- कट्टा, झक सफेद डिजाईनर शेरवानी में सजा एक व्‍यक्ति  मुझे पीछे हटने का इशारा कर रहा था । उस के साथ एक महिला और बारह-तेरह साल की लड़की भी थी। वे दोनों भी सुंदर और नए वस्‍त्रों में थी । महिला सोने के गहनों से लदी थी । उस ने सिर पर पल्‍लू रखा हुआ था । वे उस सज्‍जन की पत्‍नी और बेटी थी ।

मैं पीछे हट गया। उस सज्‍जन ने झुक कर दोनों हाथों से मेरे जूते पॉलिश करते अधेड़ के दोनों पैर छुए और फिर अपने हाथों को दोनों आंखों से लगा लिया। फिर जगमग वस्‍त्रों और आभूषणों से लदी महिला ने भी पॉलिश करते उस व्‍यक्ति के चरण स्‍पर्श किये। उसने उस के चरणों में झुकी महिला के सिर पर हाथ रखा । मेरे साथ ही बहुत से लोगों की आंखें भी इस ओर उठी थी । वे दोनों पीछे हटे तो बूट पॉलिश वाले ने अपनी जेब में हाथ डाला और जेब में पड़े सभी नोटों को नीचे बिछाए बोरी पर रख दिया । दस- बीस और पचास के मुड़े- तुड़े बहुत सारे नोट थे। उस ने उन में से कुछ लड़की को देना चाहा तो उस सज्‍जन ने लड़की को उन्‍हें लेने से मना कर दिया ।

फिर उन के बीच वार्तालाप होने लगी-  कैसे हैं ? शाम को घर आना । मैं सब्‍जी आदि बना कर रखूंगाआदि। इस दौरान पॉलिश वाले की आंखें बरसने- बरसने को तैयार दिख रही थी । उस का गला भी शायद भर आया था । क्‍योंकि वह बड़ी मुश्किल से बोल पा रहा था। फिर वे तीनों जैसे आए थे, वैसे चले गए ।

मैं फिर से बूट पॉलिश करने वाले के सामने खड़ा हो गया । मेरे मन में शंका थी। उस ने मेरे मन के भाव शायद पढ़ लिए थे। बोला-  मेरा छोटा भाई है। सरकारी नौकरी में है। लेकिन मेरी बहुत इज्‍जत करता है।  आज के जमाने में इज्‍जत से बढ़ कर क्‍या है ? उसने मुझ से प्रश्‍न किया। इस बीच वह मेरे जूते पॉलिश कर चुका था। मैंने जूते पहने और उसे पैसे दिए। मेरे मन में उस बूट पालिश करने वाले के बारे में उथल-पुथल मच गई थी । उस की जो स्थिति थी और उस के छोटे भाई की जो स्थिति दिख रही थी, उस सब से दूर उन में एक अटूट रिश्‍ता था !  भाई का रिश्‍ता, अपनों की संवेदना का रिश्‍ता। उस दृश्‍य को देखने के बाद मैं सोच रहा था कि उस मोची का भाई दूज वास्‍तव में सार्थक हो गया था ।
                                                                                                 - शेर सिंह
                                                 के.के.- 100
                                          कविनगर, गाजियाबाद - 201 001
                                                                              E-Mail - Shersingh52@gmail.com

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

हिमधारा हिमाचल प्रदेश के शौकिया और अव्‍यवसायिक ब्‍लोगर्स की अभिव्‍याक्ति का मंच है।
हिमधारा के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।
हिमधारा में प्रकाशित होने वाली खबरों से हिमधारा का सहमत होना अनिवार्य नहीं है, न ही किसी खबर की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हैं।

Materials posted in Himdhara are not moderated, HIMDHARA is not responsible for the views, opinions and content posted by the conrtibutors and readers.

Popular Posts

Followers