दीवान-ए-दीपक
मासूम थे ऐ-दोस्तों ख्वावों पे मर मिटे थे
उनकी झूठी बातें और वादों पे मर मिटे थे
हमनें उनकी वेवफाई को वफ़ा समझ लिया
गुनहगार तो हम थे जो यादों पे मर मिटे थे
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उनको देखके हमने ठंडी आहें क्या भरीवो कहते उनकी अदाओं पे तो दुनियाँ मरती है
अपने नाज़-ओ-नखरे तो इस दुनियाँ से निराले हैं
जाने सारी दुनियाँ क्यों इस नज़ाक़त पर जलती है
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ख्वावों पे भरोसा इतना कर
ताकत हो जितना सहने की
कहीं इतने ग़म मिल जाएँ न
आदत पड़ जाए पीने की
दीपक कुल्लुवी
04 -09 -2012 .
09350078399
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