सितारों की रात
हाँ वैसी ही चांदनी रात
जेसी कभी तेरे
कनार में हुआ करती थी
पर आज कुछ तो
जुदा था
कुछ तो अलग
आज तुन
गैर हो रही थी
मेरी आँखों के सामने.
तेरे गैर होते ही
मे निकल आया
तेरे मंडप से
हाँ वैसी ही
चांदनी रात
सितारों से भरी हुई
पर अब मेरे खातिर
सब वीरान था
हाँ वैसी ही चांदनी रात में
में भटकता रहा
और पहुँच वहां
जहाँ रहता था वो मलंग.
जिससे मिलना कभी
ख्वाहिश रही थी मेरी
शायद
आगाह था वो
दर्द से मेरे
तभी तो उसने
बताई वो जगह
जहाँ इकट्ठे होते है
वो सितारे
जिनका अपना कोई दर्द नहीं
औरों के दर्द के आगे
और यूँ
शुक्रगुज़ार हो के
उस मलंग का
मे पहुँच गया
उस जगह जो थी दरम्यान
पहाडो के
हाँ वो सितारों की रत
हाँ वो बिखरी चांदनी
और तनहा वहां पे मे
तेरे दर्द के साथ
मुझे इंतज़ार था
उन सितारों का
जो बकोल-ऐ -मलंग
नुमाया होते हैं
यहाँ इस रात को
रात का पहला पहर
और मेरी
मुन्तजिर आँखे
खैर और ज्यादा
मुझ इन्जार करना न पड़ा
ठंडी सबा बह चली थी
अचानक ही महक उठी थी
हर सिम्त
और वो साया
हवावो में लहराता हुआ
आकर मेरे करीब
कुछ ही फासला था
दरम्या हमारे
वो होले से बोली
तलाश हे तुझे
मुहब्बत की क्या
मैंने सर हिलाया था
इकरार मे
मैंने सुने,
उसके वो लफ्ज़
जो दिल के साथ रूह तक
उतर रहे थे
क्या हे तुझ में जब्त
मुहब्बत का?
क्या निभाई तुने वफ़ा ?
मे कुछ कहता
उससे पहले ही
वो बोली थी
अरे मैंने तो अपने हाथ से
उसकी दुल्हन सजाई हे
और मेर होटों से सिसकारी निकली
'परवीन"
परवीन शाकिर
मेर बोलते ही
वो साया
गर्दूं की तरफ
उड़ चला और मे
सकित वहीँ खड़ा रहा.
रात खिसकी
चांदनी छिटक चली थी
मुझे लगा
जैसे फजाओ में
बांसुरी बज
रही हो
हवावो में
संगीत घुल चला हो
मैंने देखा
ठंडी हवा के साथ
लहराते हुए
एक साया
मेरे सामने आ गया था
वो बोली
प्रेम चाहता हे न तू
हाँ- मेरे लब हिले थे
आसान नहीं हे
प्रेम पाना
पीना पड़ता हे
हलाहल इसके लिए
वो बोलती
जा रही थी
त्याग करना होता हे
घर का- लाज का
तब होता हे प्राप्त
कहीं प्रेम
जेसे होंटों पे मेरे
नाम हे मेरे प्रेमी
गिरधर का
वेसी ही तपस्या
करनी पड़ेगी तुझे
मेरी आवाज़ निकली
"मीरा"
प्रेम और भक्ति की देवी
"मीरा"
मैंने महसूस किया
मेरे सर पर
उसके साये को
फिर ओझल हो गई
वो मेरी नजरों से
रात गहरा रही थी
अचानक हर तरफ
शांति छा गई थी
हवायं स्थिर हो चली थी
मैंने देखा
दूर पत्थर पे एक
साया बैठा हे
जिसकी काया
स्वर्ण की तरह हे
मुखमंडल पर आभा
देवों की मानिंद
'प्रेम की खोज में हो'
मुझे ऐसा लगा
जैसे सारा माहोल
यह आवाज़ सुनने को
बेचैन था
वो आगे बोला
प्रेम-किसी सुन्दर शरीर
को पाने का नाम नहीं
प्रेम
अरे प्रेम पाना हे
तो जाव उन बस्तियों में
जहाँ कराहते हें पीढ़ा से लोग
जानवरों के झुण्ड की तरह
हांकें जाते हें
वो जिन पर प्रतिबन्ध है
इश्वर की पूजा तक पर
जा हांसिल कर
मानव जाती का प्रेम
बन जा उनका और
उन्हें अपना बना ले
और-मे
मेरी ख़ुशी का
ठिकाना न रहा
मैंने गगन भेदी नारा लगाया
'बुध'- मेरे आराध्य
और मैंने देखा
मुस्कराते हुए वो साया
फजाओ में विलीन हो गया
अचानक
रात के सन्नाटे में
घंटे बजने की
आवाज़ आने लगी
ज्यूँ चर्च में बजते हे
मेरे सामने
एक साया था
जिसके पैरहन फटे थे
और शरीर पे-ज़ख्म
मुहब्बत का
मारा हे न तू -वो बोला
यकीनन हांसिल होगी
तुझे मुहब्बत
तू जा उन लोगो के दरम्या
जिनके खेत
मठाधीशों ने
गिरवी रख लिए
जिनके ढोर
मठों में रहने वाले हांक ले गए
वो जो निएअप्राध हें
फिर भी रोज सताए जाते हें
जा ले सकता हे तो
ले ले उन मज़लूमो का दर्द
हांसिल कर ले उनकी मुहब्बत
हांसिल कर ले
मे धीरे से बोला
'खलील'-खलील जिब्रान
रात ढल चली थी
फजाओ में सादगी मचल रही थी
और में रूबरू था उस साये के
प्रेम-यही अबिलाषा हे
न तुझे
अरेमुर्ख-प्रेम तो मैंने किया हे
अपने देश से-अपने धर्म से
देख सकता हे तो देख
यह स्वर्णिम देह
जो बार-बार
कुचली गई
विधर्मियो के हाथ
'नासिर' उसे भी इश्क था
धर्म से-वतन से
भुला दिया
तुने हमारा वो बलिदान
अरे जा
प्रेम कर - धर्म से
कुर्बान हो जा-उस पर
मिट जा
और अमर कर दे
खुद को प्रेम में
मे आत्मविभोर
होकर बोला
देवल-देवाल्देवी
हाँ भोर का तारा
उग चला था
और मेरे कानो में
आवाज़ पड़ी थी-उसकी
आ-मे बताती हूँ
तुझे इश्क के बाबत
वो चांदी सी खनकती आवाज़ में बोली
- मैंने एक दुनिया बेच दी
और दीन खरीद लिया
बात कुफ्र की कर दी
मैंने आसमान के घड़े से
बदल का ढकना हटा दिया
एक घूंट चन्दनी पि ली
एक घडी कर्ज ले ली
और जिन्दगी की चोली सी ली
हर लफ्ज़
उसका अमृत था
जिसने मेरी
रूह के साथ
मेरी हसरतों को
भी अमर कर दिया
मैंने सरगोशी की थी
अमृता- अमृता प्रीतम
रात ख़त्म हो चली थी
सितारे
सहर की रौशनी में
विलीन हो चले थे
और में
आज जिसे
प्रेम का ज्ञान हुआ था
जो प्रेम की-
परिभाषा
समझ पाया था
चल पड़ा था
एक नाइ
ताजगी- के साथ
एक नए
मकसद की जानिब.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
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