छेड़ो कोई तराना के खामोश अब तो रात है
हम आज ही क्योँ हैं उदास कोई तो फ़िर बात है
हम तन्हा हैं फ़िर स्याह ये कैसी संगीनी रात है
हमें तन्हाई अब लुभाती है हैरत की बात है
हर हाल में हमें इस तरह जीना ही आ गया
डर क्योँ भला हमें हो जब खुदा का तो हाथ है
कड़वाहटों को जिन्दगी की बस पीना ही आ गया
हम इतना जानते है के कुदरत हमारे साथ है
जीते सब हैं हमको मगर यों शौक से जीना आया
इसे तुम तसबुर ही न समझो ये मेरे जजबात हैं
यों जिन्दगी प्याला ज़हर का है हमें पीना आया
हर हाल में अगर हम खुश हैं किस्मत की ही बात है !!
--अश्विनी रमेश !
हम आज ही क्योँ हैं उदास कोई तो फ़िर बात है
हम तन्हा हैं फ़िर स्याह ये कैसी संगीनी रात है
हमें तन्हाई अब लुभाती है हैरत की बात है
हर हाल में हमें इस तरह जीना ही आ गया
डर क्योँ भला हमें हो जब खुदा का तो हाथ है
कड़वाहटों को जिन्दगी की बस पीना ही आ गया
हम इतना जानते है के कुदरत हमारे साथ है
जीते सब हैं हमको मगर यों शौक से जीना आया
इसे तुम तसबुर ही न समझो ये मेरे जजबात हैं
यों जिन्दगी प्याला ज़हर का है हमें पीना आया
हर हाल में अगर हम खुश हैं किस्मत की ही बात है !!
--अश्विनी रमेश !
रात खामोश होगी.... पर आपकी ग़ज़ल बहुत कुछ कह गयी.....
जवाब देंहटाएंसुषमा जी,
जवाब देंहटाएंगज़ल पढने और टिप्पणी के लिए शुक्रिया !काश कि सभी साइट्स पर आप जैसे साहित्य में दिलचस्पी रखने वाले और अपडेट रहने वाले लेखक/पाठक होते !
wah......
जवाब देंहटाएंदीपक जी,
जवाब देंहटाएंगज़ल पढ़ने और टिप्पणी के लिए शुक्रिया !
IT'S MY PLEASURE SIR...
जवाब देंहटाएंआभार दीपक जी !
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