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स्पर्श ( लघु कहानी )



अरे , कितनी सुंदर शाल है स्वाति.... कहाँ ली ? तुम पर बहुत फब रही । ऑफिस पहुँचते ही स्वाति की सहयोगी लड़की ने पूछा । ये मेरे दोस्त .... कहते कहते स्वाति चुप हो गई । अजीब सी उदासी छा गई उसके चेहरे पे और वो अपनी सीट पर आकर बैठ गई । बीते लम्हें एक एक करके उसकी आँखों के सामने आने लगे । कितने खुश थे वो दोनों ... मातुल और वो .. ये शाल मातुल ने ही तो दी थी उसको जब एक लम्बे अंतराल के बाद वो मिले थे । उस सर्द सुबह कैसे भूल सकती है वो । मातुल ने ये शाल देती बार उससे कहा था - स्वाति , ये शाल कभी खुद से अलग न करना .. सम्भाल कर रखना इसे । जब भी इसे ओढ़ोगी इसकी गर्माहट तुम्हे मेरी दोस्ती और प्यार का स्पर्श महसूस करवाती रहेगी ।एक खुशनुमा समय बिता कर वो फिर अलग हो गये ये सोच कर कि जल्द ही फिर से मिलेंगे । पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था ।कुछ समय बाद मातुल की जिंदगी में ऐसा क्या हुआ की सब बदल गया ये स्वाति आज तक नही जान पाई थी । एक दिन मातुल का फोन आया - स्वाति , मैं बहुत बुरा हूँ । मुझे भूल जाओ । स्वाति की लाख मिन्नत करने के बाद भी उसने और कुछ नहीं कहा । उसकी आवाज़ में पसरी उदासी को स्वाति खूब महसूस करती थी । उससे बेहतर मातुल को और कौन जान सकता था । वो भी खामोश हो गई थी उस दिन से । पहले लफ्ज़ बोलते थे उनके बीच .. अब ख़ामोशी बोलती थी । कुछ रिश्तों का स्पर्श तन से नहीं मन से महसूस होता है शायद !!

सु..मन

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