ये दिवार
जो सहारा देती रही
हर उस आदमी को
जिसे आवश्यक्ता थी
इसके सहारे की...
आज ये दिवार
गिरने वाली है,
जिसे सहारा देने को
कोई भी तैयार नहीं है...
इसके पत्थर भी,
जिन्हें छुपा रखा था,
प्रेम से अपने आगोश में
भी अलग होना चाहते हैं...
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बहुत सुन्दर विम्ब...सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
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