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कपड़े - सचिन ठाकुर

वट्स एप्प पर मैने शिक्षक नामक ग्रुप बनाया है ।इस ग्रुप में मेरे बेहतरीन प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय के शिक्षक और जानकार प्रिंट ,वेब और टी वी पत्रकार मित्र शामिल हैं ।ग्रुप में आम तौर पर किसी न किसी ज्वलन्त विषय को लेकर सटीक विश्लेषण ,उम्दा बहस और कभी कभार भयंकर युद्ध जैसे हालात उतपन्न हो जाते हैं।
आज किसी शिक्षक मित्र ने शिक्षा विभाग द्वारा जारी शिक्षकों को साधारण कपड़ो में स्कूल आने की सलाह वाला पत्र इस ग्रुप में पोस्ट करा।मजेदार बात ये थी की जब मैंने इस पत्र को पढा उसी समय मैं अमेजॉन किंडल पर चम्पारण सत्याग्रह को पढ़ रहा था ।
चम्पारण सत्याग्रह निसन्देह मोहन दास कर्म चंद गांधी को राष्ट्र पिता महात्मा गांधी में परिवर्तित करने वाला पहला कदम था ।इस आंदोलन की खास बात बापू के कपड़े थे।इससे पहले वो अंग्रेजी पेंट और कमीज पहनते थे।इसी आंदोलन में उन्होंने अंग्रेजी कपड़े छोड़े और धोती ,कुर्ता और सर पर गमछा धारण कर गांव गांव जा जनता को जगाना शुरू करा।साधारण जन समूह में गांधी की छवि घर कर गई।अंग्रेजी सरकार की नीवं में दरार उतपन्न हुई।उनकी समस्या बमुश्किल 45 किलो,ठिगने और पतले शरीर वाले गांधी नहीं बल्कि उनकी महामानव बनने वाली छवि बन गई।मशहूर अखबार " पायनियर " के साथ मिल कर अंग्रेजी हुकूमत ने गांधी की छवि को बिगाड़ने का काम शुरू किया।हर दिन पायोनियर अखबार गांधी के विरुद्ध कोई न कोई लेख लिखता और हर लेख में गांधी के कपड़ो को निशाना बनाया जाता।बहुत वक्त तक गांधी ने इन लेखों पर चुप्पी साधे रखी परन्तु पानी सिर से ऊपर बह जाने के बाद गांधी ने पायोनियर अखबार को अपनी वेशभुसा के बारे में एक पत्र लिखा ।उसके आखिरी वाक्य ये थे "...... कपड़े आपकी सहूलियत के अनुसार होने चाहिए।धोती कुर्ता मुझे बेहद सहूलियत और आराम देते हैं, गमछा इसलिए सिर पर धारण करता हूँ क्योंकि ये भीषण गर्मी से बचाता है।कपड़ों को किसी धर्म ,सम्प्रदाय ,जाती या पूर्वी अथवा पश्चिमी सभ्यता में बांधना सबसे बड़ी मूर्खता होगी...... "
ये पत्र जब पायोनियर अखबार के मालिक और प्रधान संपादक के पास पहुंचा तो वो खुद गांधी से मिलने आये।उनसे माफी मांगी और ये पूरा पत्र अगले दिन के अखबार में माफी सहित छापा।
मुझे बिल्कुल नहीं पता कि मेरे विभाग के अधिकारियों का साधारण कपड़ो से अभिप्राय क्या है।कपड़ों का शिक्षा की गुणवत्ता से क्या लेना देना है, ये भी मुझे नहीं पता।अगर ये पत्र महिला अध्यापको के लिए है तो फिर पत्र जारी करने वाले अधिकारियों को तुरंत प्रभाव से अपना पद तय्याग देना चाहिए क्योंकि सामन्त वादी सोच के लोगों के लिए शिक्षण व्यवस्था में कोई जगह है ही नहीं।इस पत्र का क्या संदेश है ,इसके लिए तुरन्त एक वर्कशॉप विभाग को आयोजित करनी चाहिए जिसमें शिक्षक, न्याय विद ,फैशन डिज़ाइनर ,जनता के चुने हुए प्रतिनिधि और सबसे जरूरी " स्वतन्त्र और गणतांत्रिक देश " की असली परिभाषा समझने वाले बुद्धिमान व्यक्ति भी बुलाये जाने चाहिए।
याद रखिये " गन्दगी कपड़ो में नहीं होती , देखने वाले कि नजरों में होती है .... "
मैं फिर बापू के ऐतिहासिक पत्र की पंक्ति दोहरा दूं.... " कपड़े आपकी सहूलियत के अनुसार होने चाहिएं....... "
सचिन ठाकुर,
प्रवक्ता भौतिक शास्त्र,
राजकीय आदर्श विद्यालय सरकाघाट
ज़िला मंडी हिमाचल 

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