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जिन्दगी तेरी इक इक अदा जुर्म है --------------------
Posted by मनवा
Posted on गुरुवार, दिसंबर 02, 2010
with 1 comment
बहुत दिनों बाद आज आप से फिर मुखातिब हूँ मनवा के माध्यम से दोस्तों ,कल अचानक तेज हवा के साथ मेरे शहर में बरसात हुई , और मिट्टी की सौंधी खुशबूं के साथ इक अहसास मुझे छू कर गुजरा मैंने पूछा कौन ? बोला मैं जिन्दगी हूँ मैंने कहा बड़ी जल्दी में हो चंद सवालों के जवाब दे कर चली जाना मैंने उससे पूछा कल पौधों के पत्तों पर ओंस की बूंदों में; मैंने तुम्हे देखा था छूना चाहा तो तुम वहां नहीं थी फूलों की खुशबु में छिपी मुझे तुम अगले मोड़ पर फिर मिल गयी लेकिन जैसे ही फूल को तोडा तुम वहां से भी खिसक गयी रात को दिए की बाती में झिलमिलाती हो तो अगले ही पल उसी लौ से हाथ जला देती हो जब मैं खुद को तुम्हारे सामने अभिव्यक्त करना चाहती हूँ तो कहती हो कितना बोलती हो तुम ? और जब मैंने होठोंपर " चुप " के ताले लगा लिए तो शिकायत करती हो की कुछ कहती क्यों नहीं ? जिन्दगी तुम ऐसी क्यों हो ? मैंने जब बेबसी के साथ सबकुछ सहन करना सीख लिया तो कहती हो उठो हौसला रखो और जब मैंने हौसले के साथ बढ़ना चाहा तो साथ छोड़ गयी तुम क्यों ?जब किसी की साँसे दर्द से बोझिल होने लगी तो तुम ठंडी हवा का झोकां बन किसी अजनबी के रूप में आ गयी और जैसे ही खुद को कोई संभाले आखें खोले की तुम वहां से गायब .जब फसलों को रिमझिम फुहारों की प्रतीक्षा थी तब तुम वहां कभी नहीं थी और जब धुप में पौधे झुलस गए तो सावन बन कर क्यों चली आई तुम ?तुम्हारे कितने अजब रंग है जिन्दगी पहले तो आखों से नींदे चुरा लेती हो और यादों के वियावानों में भटकते हुए थक के नयन जब खुदब- खुद बंद हो जाए तो उनमे सपने सजा देती हो जैसे ही मन सपने संजोने लगता है लम्हे बुनने लगता है तुम इक झटके में उसे नींद से जगा देती होऔर कहती हो ये तो सपना था हकीकत मैं हूँ तुम ऐसा क्यों करती हो ? किसी की आँख किसी के इन्तजार में ताउम्र रोती है और जब वो हमेशा के लिए बंद हो जाती है तबतुम रोशनी बन वहां पहुंचती हो लेकिन बहुत देर बाद जिन्दगी तुम देर क्यों कर देती हो हमेशा ?जब दर्द से मन भर जाता है और पलकें आसुओं से तो तुम कहती हो खबरदार जो रोई तो इक आसूं भी नहीं गिराना और जब हम अपने पर अपने हालात पर खुद ही हँसने लगे तो कहती हो चुप रोने की बात पर भी कोई हंसा जाता है जिन्दगी तुम्हारी हर बात निराली है किसी को याद कर लिया तो कहती हो ये जुर्म है और भुला देना चाहो तो कहती हो और बड़ा जुर्म है दुनिया की तरफ से बेखबर हो जाओ तो कहती हो दुनिया के रंग देखो और जब इस दुनिया के रंग में खुद को रंग देना चाहो तो कहती हो हर तरह गौर से देखना जुर्म है जिन्दगी वाकई तेरी हर इक अदा मुझे जुर्म ही लगती है बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है जिन्दगी तेरी इक इक अदा जुर्म है
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1 comments:
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थोडा स्पेस होना चाहिए पंक्तियों के बीच या फिर कविता का आकार ...
जवाब देंहटाएंलिखा बहुत ही खूबसूरत है ....
एहसासों से लबरेज़ बहुत अच्छे भाव .......