बहुत दूर क्षितिज के उस पार !
पंख मिले मुझे निंदिया रानी के,
और उड़ चलूं मैं पंछी की तरह !
इस शून्य से उस शून्य तक,
विचर्ण करुं बेलगाम पतंग की तरह !
न ये दुनियां, न दुनियां के सवाल,
न कोई शिकवा न कोई झमेला !
चुरा ले कोई मुझे उस दुनियां में अनन्त,
एक जहां अनजाना सा फ़िर भी अपना सा !
अपनों के फ़रेब से दूर, ग़ैरों की नफ़्ररत से परे,
ठगी भरी हंसी से बहुत दूर !
ले चल मुझे उस क्षितिज की अनन्तता की ओर,
लौटूं न जहां से मैं कभी !
खो जाऊं मैं इस दुनियां से दूर,
जवाब देंहटाएंबहुत दूर क्षितिज के उस पार !
पंख मिले मुझे निंदिया रानी के,
और उड़ चलूं मैं पंछी की तरह !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
न ये दुनियां, न दुनियां के सवाल,
जवाब देंहटाएंन कोई शिकवा न कोई झमेला !
सुन्दर अभिव्यक्ति...