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खो जाऊं !

खो जाऊं मैं इस दुनियां से दूर, 
बहुत दूर क्षितिज के उस पार !
पंख मिले मुझे निंदिया रानी के,
और उड़ चलूं मैं पंछी की तरह ! 

इस शून्य से उस शून्य तक,
विचर्ण करुं बेलगाम पतंग की तरह !
न ये दुनियां, न दुनियां के सवाल,
न कोई शिकवा न कोई झमेला !

चुरा ले कोई मुझे उस दुनियां में अनन्त,
एक जहां अनजाना सा फ़िर भी अपना सा !
अपनों के फ़रेब से दूर, ग़ैरों की नफ़्ररत से परे,
ठगी भरी हंसी से बहुत दूर !

                                                                                  ले चल मुझे उस क्षितिज की अनन्तता की ओर,
                                                                                 लौटूं न जहां से मैं कभी !



2 comments:

  1. खो जाऊं मैं इस दुनियां से दूर,
    बहुत दूर क्षितिज के उस पार !
    पंख मिले मुझे निंदिया रानी के,
    और उड़ चलूं मैं पंछी की तरह !


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  2. न ये दुनियां, न दुनियां के सवाल,
    न कोई शिकवा न कोई झमेला !
    सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं

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