जब सैयां भए कोतवाल तो डर काहे का I
दीपक 'कुल्लुवी' (देहली ब्यूरो चीफ) न्यूज़ प्लस ऑन लाइन चैनल I
गोलचा सिनेमा दिल्ली में आजकल 'सन ऑफ सरदार ' फिल्म चल रही है अगर आप इसे देखने के इच्छुक हैं तो या तो कुछ दिन अपना मन मारकर इंतज़ार करिए य फिर टिकेट के दाम से कम से कम तिगुने पैसे जेब में लेकर चलिए तभी ब्लैक में टिकट मिल पाएगी अन्यथा धक्के मुक्के खाकर उदास मन से बापिस अपने घर ही लौटना पड़ेगा बिना फिल्म देखे हुए I एक सौ बीस रूपए वाला टिकेट ब्लैक में आपको दो सौ से तीन सौ रुपये में ही मिल पाएगा I
कल हम भी बड़ा मूड बनाकर बीस किलोमीटर दूर से तीन बजे का शो देखने सिनेमाहाल पहुंचे खूब भीड़ भड़क्का और हॉउस फुल था क्योंकि दिखावे के लिए कुछ एक टिकेट देकर खिड़की बंद लेकिन मज़े की बात में गेट के साथ सामने ही कई ब्लैकिए ऊँचे दामों पर टिकेट ब्लैक करते घूम रहे थे और हैरानी की बात यह है की उनसे सिनेमा हाल के सिक्योरिटी गार्डस,तैनात पुलिस कर्मचारी व् मैनेजर और टिकेट खिड़की की दूरी चंद कदमों की थी लेकिन किसी को यह सब दिखाई नहीं दे रहा था सिनेमा प्रशासन की सहमति बिना यह कैसे संभव हो सकता है इस बात को लेकर हमारी प्रैस रिपोर्टर 'कुमुद' शर्मा मैनेजर से मिली तो उनका मासूमियत भरा जवाब यह था की हम अन्दर तो ब्लैक नहीं कर रहे अब बाहर क्या हो रहा है यह हमारी जिम्मेबारी नहीं है अब इस कुप्रथा को रोकने की जिम्मेदारी इन सबकी नहीं है तो फिर किसकी है इसका जवाब है किसी के पास ?
जब सैयाँ भए कोतवाल तो डर काहे का वाली कहावत यहीं चरितार्थ होती नज़र आती है I प्रशासन मूक दर्शक बना ख़ामोशी से यह सब देखता रहता है और आम जनता दिल्ली में रहने और अपने कर्मों की सजा भुगतते हुए हमेशा की तरह परेशान I
अब मैं सोच रहा हूँ की ब्लैक से टिकेट लेने के लिए बैंक से कुछ लोन लेकर पूरे परिवार को यही फिल्म दिखाऊंगा ज़रूर I
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