कुछ रोज़ पहले रोज़ाना की तरह टहल रहा था | टहलते टहलते एक खुले मैदान के पास से गुज़रना हुआ| वहां कुछ बच्चे खेल रहे थे | तभी एक छोटा सा बच्चा अपनी बहिन के साथ झगड़ रहा था | बचे की उम्र कोई छः साल और उसकी बहिन की उम्र तकरीबन आठ साल प्रतीत हो रही थी | झगड़ते झगड़ते अचानक बच्चे ने अपनी बहिन को धक्का दिया और बोला - 'साली मा... लौ... | ' बाच्ची तो गिरते गिरते बची|, पर मैं उस नन्हें से बालक के मुंह से इन शब्दों को सुन कर मैं हक्का बक्का रह गया | मैंने बच्चे को डांटते हुए कहा -'गंदी बात करता है| ऐसा भी कोई बोलता है क्या?' बच्चा वहां से भागता हुआ बोला : 'जब पापा मम्मी से लड़ते हैं, तो मम्मी को ऐसा ही बोलते हैं|' ज़ाहिर है बच्चे ने ये भाषा अपने घर मेम ही सीखी होगी | इसमें बच्चे का दोष नहीं क्योकिं जन्म लेते ही वो भाषा ले कर तो नहीं आया न?
अकसर बच्चे बड़ों के द्वारा इस्तेमाल की गयी भाषा को बड़ी जल्दी अपना लेते हैं| दरअसल हमारी रोज़ाना की भाषा में फूहड़पन और अभद्रता आ गयी है| पैंट कोट टाई पहने हुए दो जेंटलमैन यार जब मिलते हैं तो उनके सम्बोधन मैं भी भाषा का बिगड़ा हुआ मिज़ाज़ झलकता है| एक कहता है -'और भई माँ... | दूसरा जवाब यूँ देता है-'ठीक है भई पैं ... |' आत्मीयता मेँ वे भूल जाते हैं की उनके आस पास भी दुनिया बसती है | अगर निकट कोई बच्चा हो तो समझ लीजिए ये शब्द तो जुकाम की तरह एक बच्चे से सुसरे को और फिर पता नहीं कहां कहा तक पहुंच जाऐंगे|
इस तरह की भाषा से आप विद्यालयों मेँ भी रु बू रु हो सकते हैं| मज़े की बात ये है कि छात्र ताबड़तोड़ इन
एक्सपलेटिवज़ का इस्तेमाल करते हैं| भाषा का ज्ञान न होना अलग बात है, परन्तु फूहड़ और अभद्र भाषा का नियमित तौर पर इस्तेमाल समाज में बढ़ रहे छिछोरेपन व विकृत मानसिकता को दर्शाता है| जेम्ज़ रोज़ोफ है - 'भाषा की फूहड़ता मदिरा की तरह होता है, जिसका इस्तेमाल एक ख़ास समूह मेँ ख़ास समय पर ही प्रयुक्त की जा सकते है|
Vulgarity is like a fine wine: it should only be uncorked on a special occasion, and then only shared with the right group of people.”
― James Rozoff
अकसर बच्चे बड़ों के द्वारा इस्तेमाल की गयी भाषा को बड़ी जल्दी अपना लेते हैं| दरअसल हमारी रोज़ाना की भाषा में फूहड़पन और अभद्रता आ गयी है| पैंट कोट टाई पहने हुए दो जेंटलमैन यार जब मिलते हैं तो उनके सम्बोधन मैं भी भाषा का बिगड़ा हुआ मिज़ाज़ झलकता है| एक कहता है -'और भई माँ... | दूसरा जवाब यूँ देता है-'ठीक है भई पैं ... |' आत्मीयता मेँ वे भूल जाते हैं की उनके आस पास भी दुनिया बसती है | अगर निकट कोई बच्चा हो तो समझ लीजिए ये शब्द तो जुकाम की तरह एक बच्चे से सुसरे को और फिर पता नहीं कहां कहा तक पहुंच जाऐंगे|
इस तरह की भाषा से आप विद्यालयों मेँ भी रु बू रु हो सकते हैं| मज़े की बात ये है कि छात्र ताबड़तोड़ इन
एक्सपलेटिवज़ का इस्तेमाल करते हैं| भाषा का ज्ञान न होना अलग बात है, परन्तु फूहड़ और अभद्र भाषा का नियमित तौर पर इस्तेमाल समाज में बढ़ रहे छिछोरेपन व विकृत मानसिकता को दर्शाता है| जेम्ज़ रोज़ोफ है - 'भाषा की फूहड़ता मदिरा की तरह होता है, जिसका इस्तेमाल एक ख़ास समूह मेँ ख़ास समय पर ही प्रयुक्त की जा सकते है|
Vulgarity is like a fine wine: it should only be uncorked on a special occasion, and then only shared with the right group of people.”
― James Rozoff
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हिमधारा हिमाचल प्रदेश के शौकिया और अव्यवसायिक ब्लोगर्स की अभिव्याक्ति का मंच है।
हिमधारा के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।
हिमधारा में प्रकाशित होने वाली खबरों से हिमधारा का सहमत होना अनिवार्य नहीं है, न ही किसी खबर की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हैं।
Materials posted in Himdhara are not moderated, HIMDHARA is not responsible for the views, opinions and content posted by the conrtibutors and readers.