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इन दरिंदों को सरेआम सज़ा-ए-मौत दे दो मी लॉर्ड


जगदीश बाली
9418009808
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 आज से लगभग पांच वर्ष पहले 23वर्षीय निर्भया से सामूहिक दुष्कर्म और उसकी लोमहर्षक हत्या से दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरा देश दहल उठा था और मोमबत्तियां जलाते हुए लोग आंदोलन के रूप में सड़कों पर उतर आए थे। इसी तरह हिमाचल प्रदेश के कोटखाई में स्कूल की एक छात्रा के साथ पिछले वर्ष ऐसा ही दिल दहला देने वाला सामूहिक दुराचार और हत्या का मामला सामने आया। उस समय भी लोग सड़कों पर उतर आए थे। इन दो घटनाओं को याद कर अब ज़रा कल्पना कीजिए - आठ माह की बच्ची की, उसके मासूम चेहरे की, उसकी किलकारियों की और उसकी मुस्कुराहट की। क्या आप इस मासूम फूल सी बच्ची के बालात्कार की घटना के बारे में सोच भी सकते हैं? परन्तु जो कुछ हो रहा है वो यही ब्यां करता है कि मालूम नहीं इंसान कितने नीचे गिर सकता है!  ये समझ से परे है कि इंसान के रूप में दरिंदे हैवानियत की किस हद तक पहुंच सकते हैं। 
 मैं बात कर रहा हूं चंद रोज़ पहले की उस घटना की जिसकी खबर सुनकर पूरा देश एक बार फिर सकते में आ गया और इंसानियत एक बार फिर खून के आंसू रोई। हमारे देश की राजधानी व भारत का दिल, दिल्ली ये सुनकर दहल उठी कि यहां की शकूरबस्ती क्षेत्र में आठ महीने की मासूम बच्ची के साथ बर्बरता पूर्ण दुष्कर्म किया गया है। ये सुन कर रौंगटे खड़े हो गए और शरीर का रोम रोम थर्रा उठा कि इस वहशियाना दुष्कर्म को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि उस बच्ची के ताऊ का सताईस वर्षीय बेटा है। इस खबर के बारे में जब सुना तो कानों पर भरोसा न हुआ, इस खबर को जब पढ़ा तो आंखो पर भी शक होने लगा। जब न्यूज़ चैनल्ज़ पर देखा, तो विश्वास करना ही पड़ा। इस खबर ने दिल को अंदर तक दहला दिया, मन और मस्तिष्क विचलित हो उठे। तीन घंटे के ऑपरेशन के दौरान अस्पताल के आई.सी.यू.से असहनीय और अनहद दर्द से जूझती असहाय बच्ची की चीखों का एहसास ज़रा सी इंसानी भावना रखने वाला कोई भी इंसान सहज़ ही कर सकता है। उस बच्ची की पीड़ा के बारे में सोचते-सोचते मेरा ध्यान खुशी से उछलती कूदती अपनी बेटी की ओर गया। कहीं इसके साथ भी कभी ऐसा हो गया...। ज़रा सोचिए - आठ महीने की बेटी के साथ ऐसा बर्बरतापूर्ण दुष्कर्म! फिर सोचिए अगर ऐसा आपकी बेटी के साथ हो!  या खुदा... 
 चंडीगढ़ की उस 10 वर्षीय बच्ची के बारे में भी सोचिए जिसे उसके ही चाचा के दुराचार ने मां बना दिया और इस मासूम को पता भी नहीं उसके साथ क्या हुआ है और मां बनना क्या होता है। खिलौनों से खेलने वाली10 वर्षीय मासूम बच्ची क्या जानें उसके साथ क्या हुआ है। ऐसी दरिंदगी देख क्या आपका मन ये चीख-चीख कर नहीं कहता - इन दरिंदों को सरेआम चौराहे पर सज़ा-ए-मौत दे दो माई लॉर्ड... ? 
  सितंबर 2016 में दिल्ली में ही एक मज़दूर ने 11 महीने की बच्ची से दुराचार किया और उसे मरा हुआ समझ कर झाड़ियों में छोड़ दिया। कुछ समय पहले हरियाणा के पानीपत क्षेत्र में 11 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म किया गया, उसका गला घोंट दिया गया और दरिंदे यहां भी नहीं रुके और गला घौंटने के बाद भी दुष्कर्म करते रहे। हरियाणा के ही ज़िंद में 15 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म करने के बाद बेरहमी से मार दिया गया।  पिछले वर्ष पश्चिम बंगाल के माल्दा ज़िले के एक गांव में 9 वर्षीय मासूम से लगातार तीन दिन तक दुराचार किया गया और फिर उसे एक सुनसान इमारत में लटका दिया गया। इसी राज्य में कुछ महीने पहले एक दरिंदे ने 13 वर्षीय बालिका को दुष्कर्म करने के बाद मार दिया। देश की राजधानी दिल्ली में एक 60 वर्षीय ने दो नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया और उन्हें 5 रूपए देकर घटना के बारे में किसी से बात ना करने को कहा। ये वो मामले हैं जिनमें नबालिग बच्चियां दरिंदगी का शिकार हुई है। इसके अलावा महिलाओं से बलात्कार के मामले तो और भी अधिक है।
 निर्भया दुराचार मामले को पांच साल से अधिक हो गए हैं। उस समय इस अपराध के लिए उठी आम जन की आवज़ से लगा था कि शायद तसवीर बदलेगी और सख्त कानून बनेगा, परन्तु बलात्कार की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। कानून कह रहा है कि सब कुछ कानून के अनुसार होगा। बीते पांच वर्षों पर नज़र दौड़ाई जाए, तो बलात्कार के मामलों में भारी वृद्धि हो रही है। देश के तमाम कोनों से आए दिन सामूहिक बलात्कार की खबरें आती ही रहती हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता हो, जब किसी महिला के साथ दुष्कर्म की खबर ना आती हो। नैश्नल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के अनुसार 2015 में देश भर में बलात्कार के 34000 से ज्यादा मामले सामने आए, जबकि 2016 में 34600 मामले दर्ज़ किए गए। 2015 में 10854 मामले बालदुराचार के दर्ज़ किए गए जो बढ़ कर 2016 में 19765 तक पहुंच गए अर्थात 82 प्रतिशत की सैलाना वृद्धि। ये आंकड़े एक अंधेरी और भयावह तस्वीर पेश करते हैं। हमारे देश की राजधानी दिल्ली तो महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक होती जा रही है। थॉम्पसन रॉयटर्स फॉउंडेशन ने जून-जुलाई 2017 के बीच दुनिया के 19 महानगरों में एक सर्वे कराया जिसमें सामने आया है कि दिल्ली महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक महानगर है। 
 चंद कामयाब महिलाओं की उपलब्धियों को गिना कर हम बाकी बहू-बेटियों की दुर्दशा पर पर्दा डालकर सच्चाई से नहीं भाग सकते। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ - ये नारा तो अच्छा है, परन्तु क्या हम बेटियों को महफ़ूज़ रख पा रहे हैं? अगर बेटियां महफ़ूज़ ही नहीं, तो फिर पढ़ाएंगे किसे? खैर ज़िम्मेदारी केवल सरकार की नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी हमारी, आपकी और समाज की भी बनती है। आज किसी और की बेटी दरिंदगी का शिकार हुई है, कल मेरी और आपकी बेटी भी तो हो सकती है। इसलिए ऐसे दरिंदों का समाजिक बहिषकार कीजिए। इन्हें पकड़वाने में कानून का साथ दीजिए। और हां, ये दरिंदे बहुतायत आपके आस-पास हो सकते हैं। एन.सी.आर.बी ने खुलासा किया है कि  2015 की जानकारी के अनुसार 95 प्रतिशत बलात्कार जान पहचान वालों ने किए। इनमे से 27 प्रतिशत पड़ोसियों ने और 9 प्रतिशत परिवार के नज़दीकि सदस्य या रिश्तेदारों ने किए। इसलिए चौकन्ने रहिए। कहीं कोई दरिंदा अपके आस-पास आपकी बहू बेटियों पर बुरी नज़र तो नहीं रख रहा । हो सकता है वह घिनौनी हरकत करने की फिराक में हो। हर बेटी के मां-बाप को चौकन्ने रहने की सलाह दूंगा। समाज के पढ़े-लिखे ज़िम्मेदार लोगों को बाल दुराचार के विरुद्ध मशालें उठा कर एक जन अंदोलन करना चाहिए। सरकारों पर निर्भर मत रहिए। सरकारें तो आती-जाती रहेंगी, मगर आपकी बेटी की मासूमियत, अस्मत और स्वाभिमान पर लगे वो धब्बे शायद कभी न मिटे।   
हमें नहीं मालूम कानून की दलील क्या है, मगर एक बेटी के मां-बाप की तो यही इल्तज़ा है - इन दरिंदों को सरेआम सज़ा-ए-मौत दे दो माई लॉर्ड...

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