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लिखे हुए शब्द

लिखे हुए शब्दों का
 कोई अर्थ नहीं
अगर वे
सिगरेट की
आखरी कश की तरह
जमीन पर फेंककर
पांव से कुचल दिए जायें।
लिखे हुए शब्दों की ताकत
ऐसी हो कि बुझता हुआ दीया
फिर से सुलग जाय
अन्याय सहते
 किसी व्यक्ति के साथ
न्याय हो जाय
या जी जाय फिर से
कोई मरता हुआ आदमी।
मैं उन शब्दों को
सहेजना जरूरी समझता हूं
जो चमकते रहते हैं
तारों की तरह
अनंतकाल तक,
जिसके माध्यम से
सुन्दरता को
 बचाए रखने की
हर पल
कोशिश की जाती है।

(चित्र : सूरज जसवाल )

5 comments:

  1. मैं उन शब्दों को
    सहेजना जरूरी समझता हूं
    जो चमकते रहते हैं
    तारों की तरह
    वाकई अगर शब्द सहेजे नहीं जायेंगे तो उनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा.
    सुन्दर कविता

    जवाब देंहटाएं
  2. शब्दों की सार्थकता तलाशती बेहतरीन कविता.........वास्तव में जीवन को सुन्दरतम् बनाना ही साहित्य व मानव का सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद--- सूरज, रोशन, एम.वर्मा ,दिलीप, उम्मेद

    जवाब देंहटाएं

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