लिखे हुए शब्दों का
कोई अर्थ नहीं
अगर वे
सिगरेट की
आखरी कश की तरह
जमीन पर फेंककर
पांव से कुचल दिए जायें।
लिखे हुए शब्दों की ताकत
ऐसी हो कि बुझता हुआ दीया
फिर से सुलग जाय
अन्याय सहते
किसी व्यक्ति के साथ
न्याय हो जाय
या जी जाय फिर से
कोई मरता हुआ आदमी।
मैं उन शब्दों को
सहेजना जरूरी समझता हूं
जो चमकते रहते हैं
तारों की तरह
अनंतकाल तक,
जिसके माध्यम से
सुन्दरता को
बचाए रखने की
हर पल
कोशिश की जाती है।
(चित्र : सूरज जसवाल )
Home »
YOU ARE HERE
» लिखे हुए शब्द
लिखे हुए शब्द
Posted by रतन चंद 'रत्नेश'
Posted on रविवार, मई 23, 2010
with 5 comments
*****************************************************************************************************
आप अपने लेख और रचनाएँ मेल कर सकते
himdharamail. blogupdate@blogger.com
*****************************************************************************************************
himdharamail. blogupdate@blogger.com
5 comments:
हिमधारा हिमाचल प्रदेश के शौकिया और अव्यवसायिक ब्लोगर्स की अभिव्याक्ति का मंच है।
हिमधारा के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।
हिमधारा में प्रकाशित होने वाली खबरों से हिमधारा का सहमत होना अनिवार्य नहीं है, न ही किसी खबर की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हैं।
Materials posted in Himdhara are not moderated, HIMDHARA is not responsible for the views, opinions and content posted by the conrtibutors and readers.
जीवन इसी काम नाम है ! सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंमैं उन शब्दों को
जवाब देंहटाएंसहेजना जरूरी समझता हूं
जो चमकते रहते हैं
तारों की तरह
वाकई अगर शब्द सहेजे नहीं जायेंगे तो उनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा.
सुन्दर कविता
waah badi hi sundar kavita
जवाब देंहटाएंशब्दों की सार्थकता तलाशती बेहतरीन कविता.........वास्तव में जीवन को सुन्दरतम् बनाना ही साहित्य व मानव का सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद--- सूरज, रोशन, एम.वर्मा ,दिलीप, उम्मेद
जवाब देंहटाएं