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विचारों की चहलकदमी................

ये जो हमारा मन है ......बहुत बावरा है...........और इस मन में पनपते विचार उन्मुक्त पंछी........जो बस हर वक्त दूर गगन में उड़ना चाहते हैं .........कभी भोर की पहली किरण में.....कभी शाम की लाली में.......तो कभी रात की तन्हाई में............बस चहलकदमी करते रहते हैं .....कुछ इस तरह..............


विचारों की चहलकदमी................

आँखें बन्द करने पर
           
                ख़्वाब कहाँ आते हैं ;

विचारों की चहलकदमी में

               पल बीतते जाते है ;


नहीं रुकते उसके कदम
            
               चलते ही जाते हैं ;

नहीं होता कोई बन्धन
               
               बढ़ते ही जाते हैं ;

कभी चेहरे पर हंसी
           
               कभी रुला जाते हैं ;

लाख चाहने पर भी

               पकड़ में न आते हैं ;

सुलझाने की कोशिश में

               उलझते ही जाते हैं ;

ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश

               जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;

ज्यूं नदी की हर मौज में

               किनारे धंसते जाते हैं !!

                                                                                     सुमन ‘मीत’

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