शर्म आनी चाहिए
मुझे चालाकी नहीं आती
मेरी ईमानदारी मेरी शराफत
किसी को नहीं भाती
भोलेपन का बोझ उठाते
थक हार गया हूँ मैं
दुनियाँवालों जैसी सोच
अपनेपन को खा जाती
काश मैं 'दीपक' दीपक सा होता
जलता नहीं औरों को जलाता
मेरी जलती लौ भी 'कुल्लुवी'
तुझसे बेहतर ज़िंदगी पाती
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
०७/०३/१२.
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