शिमला। हिमाचल प्रदेश में रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उद्योग विभाग ने एक कार्य योजना तैयार की है। इसके तहत प्रदेश के अनुकूल विभिन्न भागों में शहतूत पौधशालाएं व रेशम केन्द्र स्थापित किए हैं, जहां से ग्रामीणों को शहतूत पौध, रेशम कीट, तकनीकी जानकारी तथा अन्य आवश्यक सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है।
उद्योग विभाग के निदेशक जेएस राणा ने यहह्व जानकारी देते हुए एक बयान में कहा कि बिलासपुर, कांगड़ा, मण्डी, हमीरपुर, ऊना व सिरमौर जिलों में रेशम उत्पादन के लिए उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग द्वारा रोजगार प्रदान करने के लिए विभाग विशेष प्रोत्साहन दे रहा है।
उन्होंनेे कहा कि वर्ष 2011-2012 में 9044 रेशम कृषक परिवारों ने सर्वाधिक 180.32 मी.टन ककून उत्पादन किया। हिमाचल प्रदेश सामान्य औद्योगिक निगम द्वारा संचालित नूरपुर सिल्क मिल की रेशम धागा उत्पादन इकाई को पुन: चालू किया गया है। इसमें रेशम धागे का उत्पादन किया जा रहा है, जिसका सीधा लाभ प्रदेश के रेशम ककून उत्पादकों को मिल रहा है। प्रदेश के एममात्र रेशम बीज उत्पादन केन्द्र पालमपुर को भी कई वर्षों बाद पुनर्जीवित कर रेशम बीज उत्पादन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में सात अन्य रेशम धागा उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए विभागीय तथा केन्द्रीय रेशम बोर्ड की सहायता प्रदान की गई है। इस प्रकार निजी क्षेत्र में कुल 12 रेशम धागा उत्पादन इकाइयां आरंभ की जा रही हैं, जिनमें कांगड़ा में 4, हमीरपुर व मण्डी में एक-एक, बिलासपुर में 6 शामिल हैं। भविष्य में इन रेशम धागा इकाइयों द्वारा प्रदेश में वर्तमान कुल रेशम ककून के उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत खपत की जाएगी।
उन्होंने बताया कि प्रदेश ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से मनरेगा के अंतर्गत 2011-12 के दौरान लाभार्थियों ने निजी भूमि पर लगभग 170 हैक्टेयर में 3.426 लाख शहतूत वृक्षारोपण किया गया।
श्री राणा ने कहा कि प्रमुख रेशम उत्पादक जिलों में केन्द्रीय रेशम बोर्ड की उत्प्रेरक रेशम विकास कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न रेशम क्लस्टरों के लिए कुल 7.28 करोड़ की योजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इसके लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड ने 5.85 करोड़ की दी है।
उद्योग विभाग के निदेशक जेएस राणा ने यहह्व जानकारी देते हुए एक बयान में कहा कि बिलासपुर, कांगड़ा, मण्डी, हमीरपुर, ऊना व सिरमौर जिलों में रेशम उत्पादन के लिए उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग द्वारा रोजगार प्रदान करने के लिए विभाग विशेष प्रोत्साहन दे रहा है।
उन्होंनेे कहा कि वर्ष 2011-2012 में 9044 रेशम कृषक परिवारों ने सर्वाधिक 180.32 मी.टन ककून उत्पादन किया। हिमाचल प्रदेश सामान्य औद्योगिक निगम द्वारा संचालित नूरपुर सिल्क मिल की रेशम धागा उत्पादन इकाई को पुन: चालू किया गया है। इसमें रेशम धागे का उत्पादन किया जा रहा है, जिसका सीधा लाभ प्रदेश के रेशम ककून उत्पादकों को मिल रहा है। प्रदेश के एममात्र रेशम बीज उत्पादन केन्द्र पालमपुर को भी कई वर्षों बाद पुनर्जीवित कर रेशम बीज उत्पादन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में सात अन्य रेशम धागा उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए विभागीय तथा केन्द्रीय रेशम बोर्ड की सहायता प्रदान की गई है। इस प्रकार निजी क्षेत्र में कुल 12 रेशम धागा उत्पादन इकाइयां आरंभ की जा रही हैं, जिनमें कांगड़ा में 4, हमीरपुर व मण्डी में एक-एक, बिलासपुर में 6 शामिल हैं। भविष्य में इन रेशम धागा इकाइयों द्वारा प्रदेश में वर्तमान कुल रेशम ककून के उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत खपत की जाएगी।
उन्होंने बताया कि प्रदेश ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से मनरेगा के अंतर्गत 2011-12 के दौरान लाभार्थियों ने निजी भूमि पर लगभग 170 हैक्टेयर में 3.426 लाख शहतूत वृक्षारोपण किया गया।
श्री राणा ने कहा कि प्रमुख रेशम उत्पादक जिलों में केन्द्रीय रेशम बोर्ड की उत्प्रेरक रेशम विकास कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न रेशम क्लस्टरों के लिए कुल 7.28 करोड़ की योजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इसके लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड ने 5.85 करोड़ की दी है।
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