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पूजनीय गुरु डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज को अंतिम बिदाई और कुल्लू मनाली से उनका बिशेष प्रेम I




हरिद्वार में श्री राम शरणम प्रमुख व हमारे परम पूजनीय गुरु डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज हमें इस भरी दुनियाँ में अकेले छोड़कर श्री राम की शरण में परमधाम को चले गए I
कुल्लू मनाली से महाराज जी को बिशेष प्रेम था वहीँ पर उन्होंने बरसों घोर तपस्या की थी I महाराज जी की कुल्लू घाटी को सबसे बड़ी देन यह है की जहाँ छोटे छोटे बच्चे नवयुवक लड़ाई झगड़ा, ड्रग्स, नशे की लत्त के शिकार हो रहे थे वह बुरी आदतें छोड़ कर श्री राम शरणम् से जुड़ गए और आप आज देखिये मनाली स्थित श्री राम शरणम् में जब भी अमृतवाणी होती है तो सभी हाल तो खचाखच भर ही जाते है लेकिन सड़क तक भर जाती है यह उनका कमाल नहीं तो क्या है जगह जगह लोग आपको जाप करते नज़र आ जाएँगे धीरे धीरे समस्त घाटी में श्री राम शरणम् का निरंतर विस्तार होता जा रहा है कुल्लू में महाराज जी से दीक्षित 'कुमुद' शर्मा की पहल पर उनकी छोटी बहन लवली रमणीक होटल के नजदीक हर सप्ताह अमृतवाणी करती है जिसमें बहुत सारे लोग जुड़ने शुरू हो गए हैं I श्री जयदेव 'विद्रोही' जी की छोटी पुत्रवधू 'कुमुद खुद जब शमशी कुल्लू जाती है तो अपने घर में स्थित नैना माता मंदिर में अमृतवाणी करती है और अपने मायके नांगाबाग़ में भी ज़रूर करती है I देहली में तो हर बीरवार अमृतवाणी करती ही है I

हरिद्वार में तीन जून 2012 दुपहर लगभग तीन बजे श्री राम शरणम् से महाराज की अंतिम यात्रा निकली और अपने सर्वप्रिय भक्ति स्थल नीलधारा में शाम 6 .30 के करीब लाखों भक्तों की मौजूदगी में उनके मृत शरीर को मोटर बोट में रखकर गंगा के बीचों बीच ले जाकर जल प्रवाह कर दिया गया I नीलधारा में ही उन्होंने सुबह अपना प्राण त्याग किया था जल प्रवाह से पहले भजन व् अमृतवाणी हुई चारों तरफ लाखों राम भक्त ही नज़र आ रहे थे जो देश विदेश से भिन्न भिन्न स्थानों से आये थे हजारों गाड़ियाँ खड़ी थी सबने महाराज जी को दुखी मन से अश्रुपूर्ण बिदाई दी I
मुझे ग़ज़लों,शायरी की दुनियाँ से भजनों की दुनियाँ में लाने वाले गुरु जी ही थे 1995 को मैंने गुरु जी से चंडीगढ़ में दीक्षा ली थी जब मैं रोपड़ में नौकरी करता था उनकी प्रेरणा से ही उसी दिन मैंने अपनें जीवन का पहला भजन लिखा था 'राम श्री राम श्री राम भजो,हरी सुमिरम सुबह शाम करो'......उसके बाद भजनों का सिलसिला ऐसा चला की आज तक कायम है हजारों भजन लिख चुका मेरी धर्मपत्नी 'कुमुद' भी गुरु जी से ही दीक्षित है और मेरे भजन और अमृतबाणी गाती है I अभी कुछ दिन पहले ही वह गुरु जी से मनाली स्थित श्री राम शरणम आश्रम में मिलकर आयी लेकिन मेरी बदनसीबी रही की गुरु जी के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया गुरु जी ने देह त्याग भी अपने प्रिय भक्ति स्थल हरिद्वार में ही किया I

गुरु चरणन में शीश झुकाऊँ
द्वार गुरु चाहे आ न पाऊँ .....
गुरु जी का जन्म-१५ मार्च सन् १९४० में हुआ था परम पूजनीय श्री प्रेम जी महाराज के अन्तरंग शिष्य डॉ. श्री विश्वमित्र जी महाराज ने आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसिज, नई दिल्ली में 22 वर्षों तक गौरव शाली सेवा की. आप एशिया के अकेले ओक्यूलर माइक्रोबायोलोजिस्ट के रूप में विख्यात हुए, प्रभु प्रेम का आकर्षण आपको संसार से बाँध नहीं पाया I
आपकी वाणी में विलक्षण तेज, ओज एवं सत्य का प्रभाव था I आपके प्रवचन एवं भजन कीर्तन-गायन से सभी श्रोतागण मुग्ध हों जाते थे I आपके तप का प्रभाव आपके तेजोमय मुख-मंडल से स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता था

आप अपने आवागमन एवं भोजन का पूरा व्यय स्वयं वहन किया करते थे तथा किसी से कोई भेंट स्वीकार नहीं करते थे I
आपने राम नाम को जीवन का एक मात्र उद्देश्य बनाते हुए पूज्य श्री स्वामीजी महाराज द्वारा स्थापित आदर्श परम्पराओं का दृढ़ता पूर्वक निर्वहन करते हुए अपने तेजोमय प्रभा मंडल से समूचे भारत एवं विश्व को प्रकाशित करते रहे हैं I आप दर्शन मात्र से ही सबको आनंदित एवं प्रफुल्लित कर देते थे I

ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी हैं हमारे गुरु जी हमें इस भरी दुनियाँ में अकेले छोड़कर श्री राम की शरण में परमधाम को चले गए I

इस लेख में कुछ अंश मैंने श्री राम शरणम् की वैब साईट से लिए हैं I

राम राम.....राम राम....राम राम....
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

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