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फूल की कहानी -फूल की जबानी --- फूल सिंह


फूल की कहानी -फूल की जबानी
मैं सक्षम, हूँ विलक्षण
निर्मल करता, विचलित मन
पुलकित कर तेरे, तन मन
सुगन्धित करता, वन उपवन
प्रकृति का श्रृंगार कर
महक का प्रसार कर
चिंतन करता हर एक क्षण
खुशियाँ देता मैं पल पल
न्योछावर अपना जीवन कर
कभी मंदिर, कभी जमी में
कभी रेंगता धूलि में
जीवन की प्रवाह ना कर
खुशियाँ बाटता हर एक क्षण
कभी कंठ की शोभा बनता
कभी बढाता शोभा शव
कभी गजरा नारी बनता
कभी में देता सेज सजा
क्षण भर के इस जीवन को
खुश होता तुम्हे अर्पण कर
कली से सुंदर फूल बन
मोहित करता सबका मन
सूझ देता मैं इस जग
आग नहीं फूल तू बन
ना अधीर हो ना हताश
सामना कर जटिल समाज
मन में रख दृढ़ विश्वास
ह्रदय अपने प्रेम भर
मानव का कल्याण कर



1 comments:

  1. खूबसूरत श्रृंगारिक शैली में लिखी गई रचना....फूलों के महक को उजागर किया है|

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