कहानी
हकीकत उचित अनुचित की
यह सन 1984 की बात है जब मैं डी० ए० बी० कालेज अमृतसर में गुरुनानक देव यूनिवर्सटी के तहत एम० ए० इक्नॉमिक्स कर रहा था I उग्रबाद का दौर उस समय पंजाब में अपनी चरम सीमा पर था I बहु-चर्चित आपरेशन ब्लूस्टार भी उसी समय ही घटित हुआ था I मैं हिमाचल यूनिवर्सटी से ग्रेजुएशन करने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए यहाँ आया था इसलिए आते ही मेरे मित्र भी बहुत बन गए और इतने प्यारे दोस्त बने की आज तक दोस्ती कायम है I साल दो साल में मैं वहां चक्कर काट आता हूँ औए पुराने दोस्तों से मिल आता हूँ I मैं रहता भी डी० ए० बी० कालेज अमृतसर के हॉस्टल 'महात्मा हंसराज में ही था जो बिल्कुल हमारे क्लास रूम से ही सटा हुआ था I
कालेज का वार्षिकोत्सव था जिसमें मुझे साल का सबसे ईमानदार नवयुवक (ओनैस्ट बॉय ऑफ दा इयर ) का अवार्ड मिला जो मेरे लिए फक्र की बात थी I मैं अपने आप पर गर्व महसूस कर रहा था..... और फूला नहीं समां रहा था I दूसरा मैं शुरू से ही एक कलाकार था कुल्लू के अपने स्कूल कालेज में स्टेज पर रहा हूँ इसलिए वहां जाकर भी कालेज कलब जवाईन कर लिया जिसमें बड़े अच्छे अच्छे कलाकारों,लेखकों से संपर्क हुआ आज के विश्व विख्यात पार्श्व गायक सुखविंदर सिंह भी हमारे साथ ही थे हम दोनों एक ही कलब के सदस्य थे मैं एम० ए० इक्नॉमिक्स में था और वह एम० ए० अंग्रेजी में I उस वक़्त भी हम सब उनसे पंजाबी गीत,ग़ज़लें सुनते थे उस समय भी उनकी आवाज़ इतनी दिलकश थी की क्या कहने I मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में आते ही 'सुन छईयां छईयां' गीत गाकर उन्होंने तहलका मचा दिया उनकी मेहनत लग्न नें उन्हें 'जय हो' गीत के लिए रहमान से साथ ऑस्कर अवार्ड तक़ पहुंचा दिया I हमारे ड्रामे की हीरोईन और अन्य कलाकार पूनम गुप्ता ,नीरजा गुप्ता,नीशू भी सुखविंदर के साथ ही एम० ए० अंग्रेजी में ही थीं I
हमें गुरुनानक देव यूनिवर्सटी के यूथ फैस्टिवल के लिए डी० ए० बी० कालेज जालंधर जाना था हम "सूरज की मौत" नमक नाटक कर रहे थे जिसका मुख्य किरदार मुझे ही निभाना था अब नायक मैं ही था 45 मिनट के इस नाटक में 40 मिनट तक मुझे स्टेज पर ही रहना था केवल स्टेज के पीछे चक्कर काटकर मामूली बेशभूषा में परिवर्तन करके मुझे तीन तीन रोल निभाने थे एक राजा का दूसरा बकील का और तीसरा आत्मा का I इस ड्रामे का निर्देशन कर रहे थे पंजाबी फिल्मों के विख्यात कलाकार प्रेम प्यार सिंह जी,दीप आर्ट थियेटर के मालिक दीपक जी और हमारे हिंदी के प्रोफेसर देवेन्द्र शर्मा जी I बहुत मेहनत कि थी इसको तेयार करने के लिए और इसका फल भी खूबसूरत ही मिला जालंधर से हम ट्रॉफी जीत कर ही बापिस लौटे थे I
जिस दिन हमें जालंधर के लिए रवाना होना था उस दिन सुबह हमारी ड्रामा टीम की लड़कियाँ घर से अपना सामान लेकर कालेज आ गईं और हॉस्टल में मेरे कमरे में लाकर रख दिया I बस इतनी मामूली सी बात थी और कालेज में हॉस्टल में तो बबाल मच गया कि 'दीपक' के कमरे में एम० ए० की लडकियाँ आयीं थी I अब यह बात हमारे हॉस्टल वार्डन तक भी पहुँच गयी फिर क्या था नोटिस बोर्ड पर नोटिस चिपका दिया गया जिसमें लिखा था 'दीपक शर्मा' हैज़ विन फाईण्ड रुपीज़ 25 फॉर वॉयलेटिंग दी हॉस्टल डिसिप्लिन अर्थात 'दीपक शर्मा को हॉस्टल का रूल तोड़ने के जुर्म में 25 रूपए का जुर्माना लगाया जाता है I अब जो भो नोटिस बोर्ड देखे हैरानी में पड़ जाए की दीपक जैसे शांत,सुशील लड़के ने ऐसा क्या जुर्म कर दिया की ऐसी सजा मिली मुझे बेवजह हर जगह शर्मसार होना पड़ रहा था I मैं सबको सफाई देते देते पागल हो रहा था I शरणपाल सिंह भाटिया,सुरेश जी शाह,डा० पवन,अलका,मधु,रूमी,रितू , मेरे अच्छे मित्र थे वो भी खूब मजाक भी कर रहे थे I
मैं हॉस्टल वार्डन के कमरे में गया और उन्हें सारा मामला समझाया अपनी सफाई दी और उनसे जुर्माना माफ़ करने और नोटिस बोर्ड से नोटिस हटाने की प्रार्थना की I मेरी दलीलें सुनने के बाद उन्होंने कहा बेटे हमें मालूम है की तुम बहुत अच्छे लड़के हो तुम्हारे मन में कोई पाप नहीं है हम सब तुम्हें बहुत चाहते हैं इसीलिए हमने तुम्हें साल के सबसे ईमानदार नवयुवक का अवार्ड भी दिया I लेकिन तुमने लड़कियों को अपने हॉस्टल के कमरे में प्रवेश करने दिया जो हमारी नज़रों में बहुत बड़ा जुर्म है........ इसलिए यह जुर्माना तो भरना ही पड़ेगा हम हरगिज़ माफ़ नहीं कर सकते......I वैसे वार्डन मुझे दिल से बहुत प्यार करते थे उन्होंने मुझे एक बात कही बेटे अगर मैंने आज तुम्हारा यह जुर्माना माफ़ कर दिया तो तुम जिंदगी में कभी सही और गलत का फैसला नहीं कर पाओगे .....यह यह मामूली सा जुर्माना तुम्हें उम्र भर अच्छे ,बुरे का एहसास दिलाता रहेगा.... I
उस वक़्त तो मुझे बहुत बुरा लगा था क्योंकि मैं अपने आपको एक तो स्टार समझता था दूसरा ताज़ा ताज़ा अवार्ड मिला था I लेकिन आज गहराई से उस घटना की तय में जाता हूँ तो अपने आप को सचमुच गलत पाता हूँ I लड़कों के हॉस्टल में एक जवान लड़के के कमरे में एक जवान लड़की का प्रवेश ...किसी भी तरह से उचित नहीं था I उचित अनुचित की परिभाषा मुझे बरसों बाद समझ आयी I
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
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