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अनकहे जज़्बात

एक दिन यूं ही

सामना हुआ

अपनी ‘कृति’ से

विस्मित सी वो

देख कर मुझे

कहने लगी.....

क्या सबब है – 2

जो तुम मेरी

इतनी बांह थामे चलते हो ,

अपने जज़्बातों से मुझे

इतना डुबोए रखते हो 1

यूं तो हैं सब अपने

ये कहते रहते हो ,

क्यों अपने जज़्बातों से

उनको दूर रखते हो 1

इस दुनिया की भीड़ में

तन्हा फिरते रहते हो ,

अकसर तन्हाइयों में

मुझसे आकर मिलते हो 1

चकित हूँ मै ये सोच कर

क्या होता तुम्हारा हाल ,

गर न कह पाते तुम

मुझसे भी अपने जज़्बात 1

सुनकर विचार अपनी ‘कृति’ के

मैनें कहा ....

यूं तो सब मेरे हैं जज़्बाती

उनसे दूरी मुझको है तड़पाती ,

जज़्बात तो मैने बहुत से

उनके साथ बांटे हैं ,

फिर भी जीवन में

फूल के साथ कांटे हैं 1

चाहकर भी कुछ जज़्बात

अनकहे से रहते हैं ,

दिल के किसी कोने में

बस दबे रह्ते हैं 1

तब मेरे ख़यालों में

तुम दस्तक देती हो ,

मेरे आगोश में आ जाओ

ये कहती रहती हो 1

के तुमने हैं जाने

मेरे दिल के ख़यालात ,

और कह पाई मैं तुमसे

अपने ‘अनकहे जज़्बात’ !!


                                                                     सुमन 'मीत'

1 comments:

  1. चाहकर भी कुछ जज़्बात

    अनकहे से रहते हैं ,
    बहुत खूब। अच्छी लगी आपकी कविता। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

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