एक दिन यूं ही
सामना हुआ
अपनी ‘कृति’ से
विस्मित सी वो
देख कर मुझे
कहने लगी.....
क्या सबब है – 2
जो तुम मेरी
इतनी बांह थामे चलते हो ,
अपने जज़्बातों से मुझे
इतना डुबोए रखते हो 1
यूं तो हैं सब अपने
ये कहते रहते हो ,
क्यों अपने जज़्बातों से
उनको दूर रखते हो 1
इस दुनिया की भीड़ में
तन्हा फिरते रहते हो ,
अकसर तन्हाइयों में
मुझसे आकर मिलते हो 1
चकित हूँ मै ये सोच कर
क्या होता तुम्हारा हाल ,
गर न कह पाते तुम
मुझसे भी अपने जज़्बात 1
सुनकर विचार अपनी ‘कृति’ के
मैनें कहा ....
यूं तो सब मेरे हैं जज़्बाती
उनसे दूरी मुझको है तड़पाती ,
जज़्बात तो मैने बहुत से
उनके साथ बांटे हैं ,
फिर भी जीवन में
फूल के साथ कांटे हैं 1
चाहकर भी कुछ जज़्बात
अनकहे से रहते हैं ,
दिल के किसी कोने में
बस दबे रह्ते हैं 1
तब मेरे ख़यालों में
तुम दस्तक देती हो ,
मेरे आगोश में आ जाओ
ये कहती रहती हो 1
के तुमने हैं जाने
मेरे दिल के ख़यालात ,
और कह पाई मैं तुमसे
अपने ‘अनकहे जज़्बात’ !!
सुमन 'मीत'
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अनकहे जज़्बात
Posted by सु-मन (Suman Kapoor)
Posted on सोमवार, सितंबर 20, 2010
with 1 comment
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1 comments:
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चाहकर भी कुछ जज़्बात
जवाब देंहटाएंअनकहे से रहते हैं ,
बहुत खूब। अच्छी लगी आपकी कविता। शुभकामनायें।