दी मैनें दस्तक जब इस जहाँ में
कई ख्वाइशें पलती थी मन के गावं में
सोचा था कुछ करके जाऊंगी
जहाँ को कुछ बनकर दिखलाऊंगी
बचपन बदला जवानी ने ली अंगड़ाई
जिन्दगी ने तब अपनी तस्वीर दिखाई
मन पर पड़ने लगी अब बेड़ियां
रिश्तों में होने लगी अठखेलियां
जुड़ गए कुछ नव बन्धन
मन करता रहा स्पन्दन
बनी पत्नि बहू और माँ
अर्पित कर दिया अपना जहाँ
भूली अपने अस्तित्व की चाह
कर्तव्य की पकड़ ली राह
रिश्तों की ये भूल भूलैया
बनती रही सबकी खेवैया
फिसलता रहा वक्त का पैमाना
न रुका कोई चलता रहा जमाना
चलती रही जिन्दगी नए पग
पकने लगी स्याही केशों की अब
हर रिश्ते में आ गई है दूरी
जीना बन गया है मजबूरी
भूले बच्चे भूल गई दुनियां
अब मैं हूँ और मन की गलियां
काश मैनें खुद से भी रिश्ता निभाया होता
रिश्तों संग अपना ‘अस्तित्व’ भी बचाया होता..............!!
सुमन 'मीत'
Home »
YOU ARE HERE
» अस्तित्व
अस्तित्व
Posted by सु-मन (Suman Kapoor)
Posted on रविवार, सितंबर 12, 2010
with No comments
*****************************************************************************************************
आप अपने लेख और रचनाएँ मेल कर सकते
himdharamail. blogupdate@blogger.com
*****************************************************************************************************
himdharamail. blogupdate@blogger.com
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हिमधारा हिमाचल प्रदेश के शौकिया और अव्यवसायिक ब्लोगर्स की अभिव्याक्ति का मंच है।
हिमधारा के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।
हिमधारा में प्रकाशित होने वाली खबरों से हिमधारा का सहमत होना अनिवार्य नहीं है, न ही किसी खबर की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हैं।
Materials posted in Himdhara are not moderated, HIMDHARA is not responsible for the views, opinions and content posted by the conrtibutors and readers.