जीवन की राहों में कई बार कदम कुछ ऐसी राह पकड़ लेते हैं जिसकी कोई मंजिल नहीं होती या यूं कहो कि मंजिल सपना बन जाती है और वो राह स्वप्निल ।
स्वप्निल राह
जीवन की सच्चाई से
अनभिज्ञ वो
बढ़ती जा रही थी
स्वप्निल रास्तों के गांव
लेकर विचारों की छांव
कदम पर आई ठोकर को
विश्वास के पत्ते से सहलाती
बस बढ़ती जा रही थी
बेखौफ वो जज़्बाती
मंजिल से दूरी
लगती अब कम थी
आँखें भी खुशी से
हो गई नम थी
पर.....
एक पल में मानो
सब कुछ बिखर गया
तिनका-तिनका कर घरौंदा
अब तो टूट गया
उसकी ये राह
सिर्फ स्वप्निल थी
जीवन की सच्चाई नहीं
मन की भटकन थी
ये जानती है वो
ये जानती है वो
कि स्वप्निल राहों की
दिशाएं नहीं होती
गर न होता
ये नाजुक मन
न होते अरमान
न ही आशाएं होती
न होते अरमान
न ही आशाएं होती ...............
सुमन ‘मीत’
Home »
YOU ARE HERE
» स्वप्निल राह
स्वप्निल राह
Posted by सु-मन (Suman Kapoor)
Posted on शुक्रवार, अक्तूबर 01, 2010
with 1 comment
*****************************************************************************************************
आप अपने लेख और रचनाएँ मेल कर सकते
himdharamail. blogupdate@blogger.com
*****************************************************************************************************
himdharamail. blogupdate@blogger.com
1 comments:
हिमधारा हिमाचल प्रदेश के शौकिया और अव्यवसायिक ब्लोगर्स की अभिव्याक्ति का मंच है।
हिमधारा के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।
हिमधारा में प्रकाशित होने वाली खबरों से हिमधारा का सहमत होना अनिवार्य नहीं है, न ही किसी खबर की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हैं।
Materials posted in Himdhara are not moderated, HIMDHARA is not responsible for the views, opinions and content posted by the conrtibutors and readers.
ये जानती है वो
जवाब देंहटाएंकि स्वप्निल राहों की
दिशाएं नहीं होती
बिलकुल सही कहा। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।