अन्दर जो पलता है , आँखों से बहता है ।
बेजुबान है मगर , फिर भी कुछ कहता है ।
नहीं रखता कोई बन्धन , पर जकड़े रखता है ।
मन की बातों को , खामोशी से तोलता रहता है ।
ये है ‘अंतर्द्वन्द’ , जो चुपचाप चलता रहता है !!
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अंतर्द्वन्द
Posted by सु-मन (Suman Kapoor)
Posted on शनिवार, अक्तूबर 02, 2010
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2 comments:
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अंतर्द्वंद को बखूबी लिखा है ..
जवाब देंहटाएंअन्दर जो पलता है , आँखों से बहता है ।
जवाब देंहटाएंबेजुबान है मगर , फिर भी कुछ कहता है । बहुत्सुन्दर। शुभकामनायें