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चीड़ू की पाठशाला

अपने गांवके प्राइमीरी इस्कूल के अकेले चीड़ू ड्राइंग मास्टर जी सर का दसवीं के जाली सर्टिफीकेटपर नाम केएस है। जब एक दिन उनको इस्कूल के इकलौते पक्के मास्टर जी ने अपनी जगहठेके पर पढ़़ाने के लिए तैनात कर खुद होल सेल का काम शुरू किया तो वे इस्कूल मेंकेएस से खेस हो गए। कुछ दिन तक बच्चे उन्हें केएस ड्राइंग मास्टर जी सर भी कहतेरहे पर जैसे जैसे वे घिसते रहे उनका नाम घिस कर केएस से खेस ड्राइंग मास्टर जी सरहो गया।
पंद्रहसाल से इस इस्कूल में पूरे दम खम के साथ बच्चों को आदर्श नागरिक बना रहे हैं। एकचीड़ू के माध्यम से अकेले ही पांच पांच कक्षाओं को हिसाब, हिंदी और हिंदीके माध्यम से अंगे्रजी। पक्के मास्टर जी को अब कोई जानता भी नहीं कि वे इस इस्कूलके असली मास्टर जी थे। वे महीने की हर पहली को इस्कूल रात को आते हैं और चीड़ूड्राइंग मास्टर जी के हाथों पर तयशुदा ठेके के नोट धर दो नग पी पिला गिरते पड़तेचले जाते हैं। उनका होल सेल का काम अच्छा चल निकला है।
कक्षा कोईभी हो । ड्राइंग मास्टर सर जी सफेद पड़ चुके ब्लैक बोर्ड के अधफट्टे के बिलकुल बीचपंद्रह साल से जमे चीड़ू पर एक बार फिर चाक फेर हर क्लास के लिए एक नए दिन का चीड़ूबना देते हैं और फिर चुपचाप बीड़ी सुलगा किनारे बैठ गुनगुनाते रहते हैं। आज तकउन्होंने न उसकी टांगें ठीक की न उसके पंख। जो एकबार विधाता की तरह बन गया सो बनगया। अब तो चीड़ू सुधरेगा तो अगले जन्म में ही। आने वालों को बना बनाया चीड़ू मिलजाता है तो जाने वालों के साथ वह जाने को लाख गुहार भी करे पर चीड़ू मास्टर जी सरउसे छोड़ें तब न! चीड़ू अगर जाती क्लास के साथ उड़ गया तो इस्कूल में बचेगा क्या!! हरक्लास के बच्चों को चीड़ू मास्टर जी सर से कुछ मिले या न पर उनको बना बनाया चीड़ूजरूर मिल जाता है, इस्कूल में आने से पहले ही।
......और बच्चे गणितकी किताब खोल कापी में चीड़ू बनाने जुट जाते हैं। बच्चे विज्ञान की किताब खोल कापीमें चीड़ू बनाने जुट जाते हैं। बच्चे हिंदी की किताब खोल कापी में चीड़ू बनाने जुटजाते हैं। बच्चे अगली क्लास में चले जाते हैं पर चीड़ू है कि वहीं का वहीं डटा रहताहै। बच्चे हैं कि प्राइमीरी इस्कूल से मिडिल इस्कूल में चले जाते हैं। कुछेक की तोशादियां भी हो गई, बच्चे भी चीड़ू देखने लग गए, पर चीड़ू ड्राइंगमास्टर जी सर का चीड़ू ब्लैक बोर्ड पर से मजाल है जो टस से मस हुआ हो।
अब तोचीड़ू है कि ब्लैक बोर्ड को ही अपना पक्का घोंसला कर बैठा है। पर किसी बच्चे कीक्या मजाल जो उसे वहां से उड़ाकर भगाने की हिम्मत करे। पहले तो बच्चे दबी जबान मेंखेस ड्राइंग मास्टर जी सर को पीठ पीछे ही चीड़ू गुरू जी सर कहते थे पर अब सामने भीबोल लेते हैं। कुछ दिन तक तो ड्राइंग मास्टर जी सर ने बच्चों को मां बहन कीगालियां भी दीं, पर अब कुछ नहीं कहते , चुपचाप सुन लेते हैं। बुढ़ियाते जा रहे हैं न।
आज फिरक्लास में आते ही चीड़ू ड्राइंग मास्टर जी सर ने पंद्रह साल से बोर्ड के बीचों बीचकब्जा जमाए चीड़ू के रात को फीके पड़े अंगों पर टूटा चाक घुमा कर चैन की लंबी सांसली तो बंसी के बेटे ने टोक दिया,‘चीड़ू मास्टर जी! ओ चीड़ू सर जी!!
हां बोल भूतनीके क्या बीमारी है?’
मास्टर जी! आपनेआज भी चीड़ू के पंख छोटे ही रखे । पेट बड़ा ही रखा। और टांग भी एक ही। एक छोटे दूसरेबड़े पंख से चीड़ू उड़ नहीं पाएगा चीड़ू गुरू जी।
अबे चीड़ू उड़नाही कहां चाहता है यहां से! इसे पता है यहां से उड़ कर जाएगा तो खाएगा क्या? सालों, अपनी तरह गधासोचते हो चीड़ू को? ....और किसी की क्या मजाल जो यहां से चीड़ू को उड़ा दे। हाथ पांवन तोड़ के रख दूं उसके। अब तो वह उड़ कर नहीं मरकर ही यहां से जाएगा।कह चीड़ू मास्टरजी सर ने हाथ में बचा चाक का टुकड़ा बिना निशाना लगाए उसके सिर पर दे मारा तो वहबचने के बाद भी अपने सिर को बचा सका और आगे से सिर को मलता बैठ गया।
पर मास्टर जी इसचीड़ू का लाभ क्या है? भैंस बना देते तो?’ राम सुखिया की लड़की ने महीना पहले धोए बालोंको खुजलाते कहा।
क्या करूंगाभैंस बनाकर! सालो, जिस दिन से यहां आया हूं तबसे दूध तो पानी वाला ही दे रहेहो। उस दिन भैंस बनेगी जिस दिन मुझे खालिस दूध लाओगे। समझे!! चलो कापी में चीड़ूबनाना शुरू करो।
नहीं चीड़ूमास्टर सर जी। हम नहीं बनाएंगे अब चीड़ू। वह चीड़ू तो बिलकुल नहीं जो हमारे चाचे बुआके बक्त से ऐसे ही यहीं बैठा हो। अब हम पांचवीं में हो गए हैं। हम भी उड़ने वालेहैं। इसलिए इस चीड़ू के पंख ,पेट ठीक करो ताकि यह भी हमारे साथ उड़ जाए।दो बच्चे एक साथबोले तो चीड़ू मास्टर जी सर चुप रहे अपनी कमर दबाते हुए। चीड़ू मास्टर जी सर ने अपनीकमर दबाई तो सब बच्चे हंसने लगे।
हंस क्यों रहेहो भूतनियों के?? कल जब मेरी उम्र के होओगे तो कमर नहीं पूरे सड़ जाओगे।
आपकी कमर मेंदर्द क्यों हो रही है चीड़ू मास्टर सर जी? कल मालिस के लिए गाय का घी लाऊं क्या?’ संते के पंद्रहसाले ने चीड़ू मास्टर जी सर को पट्टू डालने की कोशिश की।
साले गाय के घीके नाम पर गधे की चर्बी दे जाते हैं। चल चुपचाप बैठ और ठीक वैसे ही चीड़ू बना जैसेमैंने बनाया है नहीं तो अबके भी फेल कर दूंगा।सबको पता था कि मास्टर सर जी गई रात को भीमुफ्त की दारू पीकर गिर गए थे नाले में। मुफ्त की पीने के लिए तो वे लाहौर तक पैदलजा पहुंचे।
सर जी! चीड़ूबनाने का फायदा क्या है?’ सीतु के लड़के ने पूछा।
अबे! परे बैठ!ड्राइंग मास्टर जी सर से जबान लड़ाता है। उसे तोलने की कोशिश करता है जिसने आज तकदुनिया को तोला है।
नहीं चीड़ूमास्टर सर जी। ऐसी बात नहीं। मैं तो अपने ज्ञान को बढ़ाना चाहता हूं।कह उसने दोनोंहाथ जोड़ दिए।
तो ठीक है। परपहले बता गाय बनाने का फायदा क्या है?’
गाय दूध देतीहै। गाय गोबर देती है। गाय हमारी माता है।
सालों तभी उसेसड़कों पर आवारा छोड़ रहे हो??’ अब चीड़ू मास्टर जी सर का गुस्सा देखने लायक था,‘ तुम्हारी छोड़ीहुई माओं ने कल मेरी सारी साग भाजी की सारी क्यारी खा दी। अब साग भाजी कहां सेआएगी??’
मैं लाता रहूंगासर जी।
शाबाश! ऐसे होतेहैं अच्छे बच्चे। बहुत बड़ा आदमी बनेगा जिंदगी में। कल सरसों का साग ले आना। तू आजचीड़ू नहीं बनाएगा।
चीड़ू ड्राइंगमास्टर सर जी! अब पता चला कि चीड़ू का पेट बड़ा क्यों, एक टांग सेलंगड़ा क्यों ,पंख छोटे बड़ेक्यों,?’
अच्छा बोलो, इस चीड़ू का पेटबड़ा क्यों?’
जय हिंद!!हम सबचीड़ू मास्टर जी सर को साग भाजी रोज लाएंगे।पूरे प्राइमीरी इस्कूल के बच्चों ने एक साथकहा तो चीड़ू ड्राइंग मास्टर जी सर ने मन ही मन कहा, गधे की औलादो!इतना भी नहीं जानते! चीड़ू का मोटा पेट नहीं रखता तो कभी का उड़ नजाता। जो ये उड़ जाता तो मैं करता क्या। मेरी तो रोजी रोटी ही ये चीड़ू है। अब तो येउड़ेगा तो मेरे साथ ही उड़ेगा। मैं गधा नहीं, ड्राइंग मास्टर सर जी हूं सर जी।
है कोईमाई का लाल जो उस गांव के ब्लैक बोर्ड पर बरसों से जमे इस चीड़ू को उड़ा सके।

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