आखरी पन्नें
आसाँ न समझ यह लफ्ज़-ए-मुहब्बत
इतना आसाँ न है
यह दर्द-ओ-गम ,तन्हाई का
बिशाल समुंदर है
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
१९-११-२०१०.
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