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सुप्त जागृति

सुप्त जागृति


जागने से गर सवेरा होता
इंसा का रूख कुछ और होता ;


सुप्त जागृति को मिलती लय
जीवन बन जाता संगीतमय ;


न रोता वो कल का रोना
सीख लेता आज में जीना ;


न सताती भविष्य की चिंता
दुख में पल पल न गिनता ;


यूं तो वो हर रोज ही जगता
अन्दर के चक्षु बन्द ही रखता ;


देखता सिर्फ भूत और भविष्य
वर्तमान का ना होता दृष्य ;


 समझ को कर तालों में बन्द
इच्छाओं में हो जाता नज़रबन्द ;


ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
भ्रम में होता खुशियों का डेरा ;


न जाना वो सूर्य का सन्देश
धूप और छाँव का समावेश !!


                                                                       सुमन 'मीत'

1 comments:

  1. ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
    भ्रम में होता खुशियों का डेरा
    और ये भ्रम शायद टूटना भी मुनासिब नहीं

    न जाना वो सूर्य का सन्देश
    धूप और छाँव का समावेश
    बहुत अच्छी रचना है.

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