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मोनाल |
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जुजुराणा |
कुल्लू हि.प्र (प्रताप अरनोट) : हिमाचल प्रदेश राज्य पक्षी मोनाल की पदवी कुछ वषों पहले छिन जाने के कारण आज मोनाल का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। मोनाल के सिर में खूबसूरत कलगी तथा स्वादिष्ट मांस के लिए इसका शिकार शुरू से होता आ रहा है। ऐसा जाहिर हे कि मोनाल की कलगी और मांस की मांग के चलते इसका अंधाधुंध शिकार होने के कारण शंख्या में भारी कमी आ जाने तथा राजनीतिक के शिकार की बजह से राज्य पक्षी का ताज मोनाल से छिन कर उसी की तरह खूबसूरत पक्षी जुजुराणा(वेस्टर्न हिमालयन ट्रेगोपेन) को राज्य पक्षी के ताज से अंलकृत कर दिया गया। जिसके चलते आज मोनाल की तरपफ विभाग तथा सरकार भी खास तव्वजो नहीं दे रही है।
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जुजुराणा |
उल्लेखनीय है कि 2400 मी. से 4500 मी. की उंचाई पर वर्फ की पहाड़ियों में रहने वाला पक्षी मोनाल हिमाचल प्रदेश के अलावा सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कशमीर तथा तिब्बत व भूटान में भी पाया जाता है। मोनाल नेपाल का राष्ट्रीय तथा उतराखण्ड का राज्य पक्षी के सिंहासन पर विराजमान है जिसे डॉपफे के नाम से जाना जाता है। परन्तु हिमाचल प्रदेश में इससे राज्य पक्षी की जबरजस्ती पदवी छिन ली गई। यह पक्षी भारी वपर्फवारी की वपर्फली पहाड़ियों में अपना भोजन जमीन की जड़ों को खोद कर पेट पाल लेता है। अपैल से अगस्त माह के बीच मोनाल जोड़ों में दिखाई देता है। नर मोनाल की खूबसूरत कलगी(शिखा पंख) और स्वादिष्ट मांस ही इसके सबसे ज्यादा जान के दुश्मन हैं। हिमाचल प्रदेश में इसकी कलगी को लोग अपनी टोपी में लगाना अपनी शान समझते हैं। लोग इसके मांस के भी बहुत शोकीन हैं, जिसके के चलते इसका शिकार प्रदेश में अंधाधुंध जारी रहा जिसके कारण वन्य प्राणीयों में मोनाल की संख्या सबसे ज्यादा घटती जा रही है। राज्य पक्षी की पदवी छिनने के बाद मोनाल का विज्ञापनों तथा सरकारी व गैर-सरकारी इशितहारों से भी पता कट गया है। आज इसे बचाने व घटती संख्या पर सरकार व विभाग ने भी मुंह मोड़ लिया है। सन् 1982 से इस पक्षी का अंधाधुंध शिकार किया जाने लगा तो इसी वर्ष से सरकार ने मोनाल के शिकार पर कानून पास करके पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया परन्तु हैरानगी की बात है कि प्रतिबंध के बाद भी इसका शिकार धड़ले से चलता रहा। आज हालत यह है कि मोनाल की संख्या दिनप्रति दिन घटती गई और आज खत्म होने की कगार पर है। शिकारियों ने वन विभाग के कुछ कर्मचारियों के साथ मिलकर इस खूबसूरत पक्षी को कलगी और स्वादिष्ट मांस के लिए अवैध् तरीके से मारना जारी रहा और कलगी कई अपफसरों की टोपी व कोट की शान बनती रही तथा मांस पार्टियों में परोसता रहा। हालांकि कलगी को टोपी व कोट में लगाने के लिए पहले से ही संबध्ति विभाग से लाईसेंस लेने का प्रावधन है परन्तु देखा गया है कि बहुत ही कम लोग होंगें जिनके पास कलगी लगाने के लिए लाईसेंस होगा। हेरानी की बात यह है कि आज तक गिनेचुने ही शिकारीयों को सजा हुई है। अगर विभाग व सरकार संवेदनशील होती तो आज कई शिकारिओं को सजा हो सकती थी और वह सलाखों के पिछे होते । उल्लेखनीय है कि अध्कि शिकार के चलते मोनाल की घटती संख्या को देखते हुए ही विभाग व सरकार ने इससे राज्य पक्षी का ताज छिन लिया। उल्लेखनीय है कि सन् 2000 में गणना के अनुसार प्रदेश में राज्य पक्षी मोनाल की संख्या 65 हजार के करीब थी जबकि सन् 2005 की गणना के अनुसार इनकी जनसंख्या घटकर मात्रा 15 हजार ही रही गई। जिला कुल्लू में मोनाल की जनसंख्या एक वर्ग किला मीटर में 1 से 10 तक के लगभग थी। अब मोनाल को मात्रा सैंक्चूरी एरिया तथा राष्ट्रीय उद्यान में ही देखा जा सकता है। ग्रेट हिमालयन नैशनल पार्क के अधिकारियों का कहना है कि मोनाल की संख्या कम हुई है लेकिन इनकी पूर्णरूप से गिनती करना असंभव है। प्रदेश सरकार द्वारा भी इन लुप्त हो रहे वन्य प्राणियों के लुप्त हो रहे कारणों का पता लगाया जा रहा है तथा इनके सरक्षण एवं संवर्धन के लिए कार्य कर रही है।
हिमाचल प्रदेश में अध्कि मात्रा में जल विद्युत परियोजनाओं के लगने के कारण जंगलों के भारी मात्रा में हुए कटान से वन्य प्राणियों की शरणास्थलीं क्षेत्रा दिन प्रति घटता गया, जिसके कारण इन पक्षियों के साथ अन्य वन्य प्राणियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता चला गया। इन परियोजनाओं के चलते सैंक्चूरी एरिया तथा राष्ट्रीय पार्क के क्षेत्रा भी चपेट में आ रहे हैं जो इन प्राणियों के लिए वेहद खतरनाक हो सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के भारी मात्रा में परियोजनाएं बनने के बाद जनजातीय क्षेत्रा लाहुल-स्पीति एक मात्रा ऐसा क्षेत्रा बचा था जहां इन वन्य प्राणियों के लिए सुरक्षित था परन्तु अब सरकार की नजर इस क्षेत्रा पर भी पड़ चुकी है और कई जल विद्युत परियोजनाए इस क्षेत्रा में बनने की योजनाएं बना चुकी है जिसके चलते इन प्राणियों का भविष्य खतरे में है।
सुरभि न्यूज एण्ड पफीचर एजेंसी
हिमाचल प्रदेश
ये तो एक दिन होना ही था।
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