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हसरत-ए-मंजिल

न मैं बदला

न तुम बदली

न ही बदली

हसरत-ए-मंजिल

फिर क्यूं कहते हैं सभी

कि बदला सा सब नज़र आता है



शमा छुपा देती है

शब-ए-गम के

अंधियारे को

वो समझते हैं

कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ...............!!

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