तीर्थ स्थली पुरी में भगवान जगन्नाथ के उस बहुत बड़े मंदिर में जा कर उसने जहां -कहीं भी मूर्तियां, तस्वीरें, फल- फूल चढ़ाए हुए स्थान देखे, वह श्रद्धा और आदर से उन के आगे नत मस्तक हो कर अपना शीश झुकाता रहा । दरअसल, वह अपने एक प्रिय जन की अकाल मृत्यु के पश्चात मंदिर में दिवंगत आत्मा की शांति और अपने मन को संतोष देने और पुण्य कमाने के इरादे से आया था ।
बहुत देर तक भगवान की मूर्तियों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के पश्चात एवं मंदिर की प्रदक्षिणा कर बाहर निकला तो मंदिर के आस- पास, बैठे- खड़े कुछ भिखमंगों को अपने प्रिय बन्धु को स्मरण करते हुए पच्चीस -पचास पैसों के सिक्के फैंकते हुए आगे बढ़ता रहा। जेब में पड़ी थोड़ी सी रेजगारी जब खत्म हो गई, तो उसने भिखारियों को और आगे बढ़ने से रोक दिया । लेकिन एक भिखारी जिसे शायद कुछ नहीं मिला था, उस के पीछे ही पड़ गया । " मोते भी दियो बाबू … मोते भी दिया बाबू " की रट लगा कर । भिखमंगा जब उस के साथ ही हाथ फैलाए चलने लगा तो वह असहज होने लगा । और, फिर उस को गुस्सा आ गया । उस ने एक नजर इधर - उधर डाली और एक झन्नाटेदार चांटा भिखमंगे के गाल पर जड़ दिया । भिखमंगा गाल पकड़े अविश्वास से खड़ा रह गया । परन्तु पल भर में भिखमंगे की आंखें घृणा से भर उठी थी । और, वह संतोष से आगे बढ़ गया जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
शेर सिंह
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