Sudheer Maurya
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उसकी बातो में
लगने लगा है
बहुत कुछ
बनाव इन दिनों
किसी और की
गली से
गुजरने लगे हैं
उसके पाँव इन दिनों
मागने लगा है
कोई और
उसकी जुल्फों की
छाओं इन दिनों
हाँ चर्चे हैं
उसके एक और
अफाएर के
गाँव में इन दिनों
हो न हो
वो सवार है
प्रेम की
दो नाव में इन दिनों।
मेरी पुस्तक 'हो न हो' की एक नज़्म जो युग वंशिका के वार्षिकांक में भी प्रकाशित हुई।
सुधीर मौर्य
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