कई वर्षों से यह बहस आम है कि ब्लॉग पर जो साहित्य लिखे जा रहे हैं वह कूड़ा है यानि दोयम दर्जे का है । हमारे कई साहित्यिक मित्र ऐसे हैं जो बार-बार यह तर्क देकर मुझे चुप रहने का संकेत देते रहे हैं कि बताइये यदि ब्लॉग अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम होता तो हिन्दी के गंभीर लेखक इससे दूरियाँ क्यों बनाकर रखते ? मैंने कभी इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखा और हमेशा रवि रतलामी जी के उस वक्तब्य का समर्थन करता रहा कि आप माने या न माने हिन्दी साहित्य को नया सुर-तुलसी ब्लॉग से ही प्राप्त होगा । क्योंकि माध्यम चाहे जो हो प्रतिभाएं जब साधना में आँखें बंद करती हैं तो सृजन के सारे नयन भक्क खुल जाते हैं ।
आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि हमारी इस धारणा को प्रतिष्ठापित किया है एक ऐसे होनहार युवा ब्लॉगर ने जिन्होने नवंबर-2008 से कहानियाँ ब्लॉग पर अपने सधे हुये स्वर प्रकाशित करने शुरू किए और देखते ही देखते उस गंतव्य की ओर अपना कदम बढ़ा दिया, जहां शेक्सपेयर के 'बृट्स' मिल जाएँगे और बाबा नागार्जुन का 'बलचनमा'भी । जहां प्रेमचंद का 'होरी' किसी अलाव के पास बैठा मिल जाएगा , वहीं आँखों में आग की लपटे लिए किसी "मद्यप क्लीव रामगुप्त" की नपुंसकता को धिक्कारती जय शंकर प्रसाद की "ध्रुव स्वामिनी" भी । नाम है किशोर चौधरी ।
रेगिस्तान के दूर दराज क्षेत्र के किसी लेखक के काम और पहचान का दुनिया भर में चर्चा और स्वागत का विषय होना आश्चर्यजनक लग सकता है किन्तु आधुनिक डिजिटल-ऐज़ में इसी के जरिये किशोर चौधरी की पहली किताब 'चौराहे पर सीढ़ियाँ' रीलिज होने से पहले ही हिट हो गई है। यह हिंदी में पहली बार हुआ है कि हिंदी की किताब को ऑनलाइन बेचने वाली वेबसाइटों पर प्री-बुकिंग पर रखा गया है और यह अंग्रेजी किताबों से होड़ ले रही है। जबकि कहा जा रहा है कि हिंदी किताबों को खरीदकर पढ़ने का प्रचलन लगभग खत्म हो गया है। ब्लॉग पर लिखी गयी कहानियों के इस संकलन 'चौराहे पर सीढ़ियाँ' ने प्री बुकिंग से बेहतर साहित्य के भविष्य को आशान्वित किया है। इन दिनों ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिए किताब खरीदने का भी प्रचलन बढ़ा है, लेकिन हिंदी किताबों की बिक्री बहुत कम है। ऐसे में ये किताब हिंदी प्रकाशन तंत्र की नयी उम्मीद है।
'चौराहे पर सीढ़ियाँ' किशोर चौधरी की 14 कहानियों का संग्रह है जो नवम्बर के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित होने वाला है। किशोर चौधरी हिंदी के ऐसे युवा कथाकार हैं जो मुद्रित दुनिया से पूरी तरह से दूर रहे हैं। किशोर ने कभी भी खुद को पत्र-पत्रिकाओं को छपाने का प्रयास नहीं किया। किशोर चौधरी ने पिछले कुछ सालों से ब्लॉग बनाकर उसपर अपनी कहानियों को प्रकाशित करना शुरू किया है। बहुत कम समय में इनके ब्लॉग पर प्रकाशित कहानियों को हजारों बार पढ़ा गया। इंटरनेट पर किशोर की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि किशोर की पहली पुस्तक के लिए ऑनलाइन मेगा स्टोर फ्लिपकार्ट ने बाज़ार में आने से पहले एक पेज बनाया है। इस पेज को पसंद करने वालों की संख्या कुछ ही दिनों में हज़ार के पार हो गयी है। इन दिनों हिन्दी भाषा की किताब के लिए ऐसा समर्थन देखा जाना एक बड़ी बात है। इस किताब की प्री बुकिंग करने वाले ऑनलाइन स्टोर इंफीबीम के पेज को 500 से अधिक लोगों ने फेसबुक पर शेयर किया है। गौरतलब है कि फेसबुक पर किसी वेबपेज को लाइक या शेयर से उस विशेष प्रयोक्ता के समस्त मित्र परिवार में वह पेज साझा हो जाता है। इसे वायरल प्रभाव भी कहा जाता है।
इंफीबीम स्टोर पर तां त्वान एंग, जेफ्री ओर्चर, कार्बन एडिसन और मेगेन हर्ट जैसे लेखकों की किताबों आने वाली किताबों के बीच हिन्दी भाषा की इस पुस्तक को सर्वाधिक लाइक्स मिले हैं। यह उन सब किताबों में इकलौती किताब है जो हिन्दी भाषा में है। अंग्रेज़ी के बढ़ते हुये दवाब के बीच इस तरह से हिन्दी कहानियों का पसंद किया जाना,हिन्दी भाषा के लिए के सुखद है।
'चौराहे पर सीढ़ियाँ'को हिंद युग्म प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। हिन्द युग्म के शैलेश भारतवासी का कहना है कि "महंगाई के इस दौर में पाठक किताबों से दूर न हों और उन तक स्तरीय साहित्य कम मूल्य में पहुँच सके इसलिए किताब का मूल्य पचानवे रुपये रखा गया है। इसी किताब को प्री बुकिंग में विशेष ऑफर के साथ स्टोर्स एक सौ एक रुपये में पाठक के घर तक डिलीवर कर रहे हैं। भारतवासी ने विश्वास जताया है कि अब पाठक अच्छे साहित्य तक आसानी से पहुँच सकेगा और भौगोलिक सीमाएं कोई बाधा न बनेगी। किशोर चौधरी की इस किताब को देश भर के छोटे बड़े कस्बों और शहरों से सैकड़ों ऑर्डर मिले हैं। इस प्रकार से हिन्दी किताबों की दुनिया सिमटने की जगह अपना नया रास्ता बना कर हर ओर फैल रही है।"
आप भी किशोर चौधरी की पुस्तक की प्री बुकिंग हेतु इस लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं :
क्या किशोर चौधरी ने यह सिद्ध नहीं कर दिया है कि यदि ब्लॉग और प्रिंट के चक्कर मे साधना परों की तलाश मे भटकती रहे , यदि मौन स्वर के माया- मृग के आखेट मे हाँफता रहे तो न माया मिलेगी न राम । एक ब्लॉगर के द्वारा बनाए जा रहे इस अनोखे कीर्तिमान पर आपको कैसी अनुभूति हो रही है ?
आइए इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं .....आप भी खुलकर शामिल होईए ......।
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