खवासखान के
अाक्रमणों से त्रस्त था । भज्जी का शासक आलमचंद भी अपने विजय अभियान पर था ।
उसने कोटी के शासक गोपीचंद को नालदेहरा की लड़ाई में’ बुरी तरह हराया
जिसमें दोनों अोर के १८०० लोग मारे गए । इसके पश्चात वह सांगरी व मधान की
अोर मुड़ा अौर उन्हें भज्जी में’ मिला लिया ।
लेकिन इससे पहले कि वह
वापिस मूलभज्जी पहुंचता गोपिचंद ने अपनी हार का बदला लेते हुए आलमचंद की
अनुपस्थिति का फ़ायदा उठाया अौर बेड़ों(राजमहल) को जला डाला अौर भज्जी के
काटली,जाबल आदि स्थानों पर कब्जा कर दिया।
अब उसे अन्यत्र राजधानी
के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश थी जो उसे तत्कालीन खाट (जिसे बाद में’
बठोल अब खटनोल कहा गया)के रूप में’ मिला अौर भज्जी की राजधानी खटनोल बनी
जो १६८८ तक रही । बाद में’ सोहनपाल ने सुन्नी को बसाया ।
(गजैटियर के अनुसार आलमचंद को २९वीं पीढ़ी का कहा गया जो जनश्रुतियों एव़ कालखंड से मेल नहीं खाता)
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