भारत की राजनीती की सब से बड़ी त्रासदी यह है की यहाँ जो भी राजनातिक दल केंद्र में या राज्य में सतासीन होता है उस की रणनीति यही होती है की पार्टी अपने चाहने वालो और खासमखासों को अच्छे पद व सुखसुविधाये प्रदान करे और जिस से सता छिनी है उस पार्टी के अफ़सरों व खासमखासों को कही एसी जगह तेनती दी जाए जहा से वे लोग सता के गलियारों से दूर रहे एक तरह से उन को कोई अहम कम न दे कर सिर्फ आराम का मोका दिया जाये।इसी तरह जब पुरानी पार्टी फिर से सतासीन होती है यही क्रम पुन:दोहराया जाता है। कुछ अफ़सर तो अपनी ताजपोशी के लिए अजीबो गरीब हथकन्डे अपनाने में भी गुरेज नहीं करते तो कुछ अपनी ऊँची पहुच व निष्ठा का या यूं कहिए चमचागिरी का राग अलाप कर मनवांछित पद को पते है।इसे सताधारी की कुशी ,इच्छा ,अपना वर्चस्व दिखाने का अहंकार ,राजनेतिक बदला या सता में बने रहने की मजबूरियां ......?
यहाँ मेरा ये कहना है कि हर दोनों राजनेतिक पार्टी -पक्ष एवं विपक्ष के ये अवसरवादी लोग केवल अपना हित ही देखते है देश ,दुनिया और प्रदेश हित से इन्हें कुछ लेना देना नहीं होतो। कुछ चमचों की तो इतनी हिमाकत बड़ जाती है कि वो तो न छोटा देखते है न बड़ा शर्म लिहाज संस्कार उन को छूते तक नहीं। विडम्बना तो ये है की ये राजनेता भी इन चापलूसों की सुनते है और इन्ही की मर्जी के आदेश हो जाते है। राजनेता ये भूल जाते है की जो राजसुख वो भोग रहे है वो चमचो के बल पर नहीं आम आदमी के आशिर्वाद के फलस्वरुप भोग रहे है ।
एक और बात जो अहम है वो पक्ष -विपक्ष की जो ये खासमखासों की उठा -पटक है इस का अंजाम होता है दोनों ही पक्षों को पाँच -पाँच सालों की सुरक्षा गारेंटी योजना ....! और अधिकांश अफसरों ,कर्मियों तथा कामगारों को शिथिल कर देना। इस राजनेतिक चक्की में पिस्ता है वो जो न इधर का है न उधर का,.. बेनामी जायेदाद भी यही दोनों किसम के लोग बनाते है चर्चायें तो होती है एक्शन कमेटी भी बनती है जब फ़ैसले का वक्त आता है फिर सता पलट जाती है खुडालेन वाले लेन में आ जाते है लेन वाले खुडालेन में चले जाते है यही क्रम चलता आ रहा है और उम्मीद है आगे भी जारी रहेगा।। कियूँकी दोनों पक्ष जानते है अल्टीमेटली होगा कुछ नहीं। पाँच साल एक भोगे तो फिर पाँच साल दूसरा ...!!, आम आदमी अपनी बनाने के लिए भगवान क़े दर जाये ,अल्लाह की दरगाह पर रोये ,ईसा के घर मोमबती जलाये, गुरु नानक शरण जाये---- या फिर भाड़ में जाये !!!!भारत महान है परमात्मा के नाम से देश चल ही रहा है,..और अच्छा चल रहा है .........
मेरी मानो तो ये देश इन बीच वालों के सिर और दम पर चला है। गाँधी , सुभाष भगत जेसे महापुरूष अगर आज होते तो कुछ करते , या कूच कर लेते। अबके महापुरूष तो सिर्फ उपदेश ही करते है ,दवाइयाँ बेचते है नेता, समाजसेवक व मिडिया संसद में ,टीवी चैनेल पर केवल चर्चा ही करते .....!!!
अमृत कुमार शर्मा
यहाँ मेरा ये कहना है कि हर दोनों राजनेतिक पार्टी -पक्ष एवं विपक्ष के ये अवसरवादी लोग केवल अपना हित ही देखते है देश ,दुनिया और प्रदेश हित से इन्हें कुछ लेना देना नहीं होतो। कुछ चमचों की तो इतनी हिमाकत बड़ जाती है कि वो तो न छोटा देखते है न बड़ा शर्म लिहाज संस्कार उन को छूते तक नहीं। विडम्बना तो ये है की ये राजनेता भी इन चापलूसों की सुनते है और इन्ही की मर्जी के आदेश हो जाते है। राजनेता ये भूल जाते है की जो राजसुख वो भोग रहे है वो चमचो के बल पर नहीं आम आदमी के आशिर्वाद के फलस्वरुप भोग रहे है ।
एक और बात जो अहम है वो पक्ष -विपक्ष की जो ये खासमखासों की उठा -पटक है इस का अंजाम होता है दोनों ही पक्षों को पाँच -पाँच सालों की सुरक्षा गारेंटी योजना ....! और अधिकांश अफसरों ,कर्मियों तथा कामगारों को शिथिल कर देना। इस राजनेतिक चक्की में पिस्ता है वो जो न इधर का है न उधर का,.. बेनामी जायेदाद भी यही दोनों किसम के लोग बनाते है चर्चायें तो होती है एक्शन कमेटी भी बनती है जब फ़ैसले का वक्त आता है फिर सता पलट जाती है खुडालेन वाले लेन में आ जाते है लेन वाले खुडालेन में चले जाते है यही क्रम चलता आ रहा है और उम्मीद है आगे भी जारी रहेगा।। कियूँकी दोनों पक्ष जानते है अल्टीमेटली होगा कुछ नहीं। पाँच साल एक भोगे तो फिर पाँच साल दूसरा ...!!, आम आदमी अपनी बनाने के लिए भगवान क़े दर जाये ,अल्लाह की दरगाह पर रोये ,ईसा के घर मोमबती जलाये, गुरु नानक शरण जाये---- या फिर भाड़ में जाये !!!!भारत महान है परमात्मा के नाम से देश चल ही रहा है,..और अच्छा चल रहा है .........
मेरी मानो तो ये देश इन बीच वालों के सिर और दम पर चला है। गाँधी , सुभाष भगत जेसे महापुरूष अगर आज होते तो कुछ करते , या कूच कर लेते। अबके महापुरूष तो सिर्फ उपदेश ही करते है ,दवाइयाँ बेचते है नेता, समाजसेवक व मिडिया संसद में ,टीवी चैनेल पर केवल चर्चा ही करते .....!!!
अमृत कुमार शर्मा
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